21 बछर का छत्तीसगढ़
छत्तीसगढ़ महतारी की यह प्रतिमा आज ग्राम दावनबोड़, सिमगा जिला बलौदाबाजार में स्थापित हो रही है। यह प्रतिमा ईश्वर साहू बंधी की तस्वीर के आधार पर निर्मित है। तस्वीर या यह मूर्ति स्थूल छत्तीसगढ़ की सूक्ष्म आत्मा को पूरा करती है। हरियर लुगरा (साड़ी), चार के बजाय दो हाथ जिनमे धान की बालियां और हंसिया है। यह कोई अलौकिक तस्वीर नहीं है, वरन यह एक कमेलिन की मुकम्मल तस्वीर है जैसी हमारी महतारियां आदिम युग से इसी तरह दिखती रही हैं। माथे पर पत्तों का मुकुट छत्तीसगढ़ की समृद्ध प्रकृति को व्यक्त करता है। कमर में करधन, गले मे सूता और मोहरमाला, गोड़ में सांटी यहां की संस्कृति को जाहिर करती है। बाएं हाथ मे बाली के साथ हंसिया है जो कर्मशीलता का प्रतीक है। छत्तीसगढ़ की इसी आत्मा और देह को बरसों पहले नरेंद्र देव वर्मा जी ने इस गीत में कितना पूर्ण और सार्थक लिखा था जो आज छत्तीसगढ़ का राज्य गीत है –
अरपा पैरी के धार, महानदी हे अपार
इँदिरावती हा पखारय तोर पईयां
महूं पांवे परंव तोर भुँइया
जय हो जय हो छत्तीसगढ़ मईया
सोहय बिंदिया सहीं, घाट डोंगरी पहार
चंदा सुरूज बनय तोर नैना
सोनहा धाने के अंग, लुगरा हरियर हे रंग
तोर बोली हावय सुग्घर मैना
अंचरा तोर डोलावय पुरवईया
महूं पांवे परंव तोर भुँइया
जय हो जय हो छत्तीसगढ़ मईया
रयगढ़ हावय सुग्घर, तोरे मउरे मुकुट
सरगुजा अउ बिलासपुर हे बइहां
रयपुर कनिहा सही घाते सुग्घर फबय
दुरूग बस्तर सोहय पैजनियाँ
नांदगांव नवा करधनिया
महूं पांवे परंव तोर भुँइया
जय हो जय हो छत्तीसगढ़ मईया
आज छत्तीसगढ़ 21 बछर का हुआ। इसकी यह नौजवानी बेहतर भविष्य गढ़ सकेगी, ऐसी आशा है। इसे अब जिम्मेदारी के साथ अपने फैसले लेने आना होगा। याद रहे कि कोई भी देश या राज्य वहां के लोगों से विकसित या पिछड़ा बनता है। अतः यह हमारे ऊपर है कि हम इसे कैसा बनाते हैं। छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के बाद जहां विकास ने गति पकड़ी, वहीं कुछ चुनौतियां हमारे सामने खड़ी हैं। अतः यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम इन चुनौतियों से निपटें। प्रकृति और संस्कृति से समृद्ध छत्तीसगढ़ महतारी दाएं वरदहस्त से छत्तीसगढ़ की उदारता, सदाशयता और सरलमना भाव से राज्य को, देश को सुखी रहने का आशीष दे रही है। यह मया और दया बना रहे। हम राज्य को, समाज को, देश दुनिया को प्रेमपूर्ण संस्कृति और प्रकृति से समृद्ध बनाये रख सकेंगे, यही आशा है, कामना है। इस अवसर पर एक सद्यकविता जिसे बागबाहरा के छत्तीसगढ़ी कवि भाई धनराज साहू ने लिखी है, प्रस्तुत है –
मोर छत्तीसगढ़ महतारी
हे सरग सहीं ये दुवारी
आनी-बानी , कला-संस्कृति
अउ रंग-रंग फुलवारी
हल्बी-भतरी-लरिया-गोंड़ी
रिकम-रिकम के बोली
कोदो-कुटकी,धान-धनौटी
बाहरा-भांठा-डोली
बारा_मासी ,तीज-तिहार ले
कुलकत खदर अटारी
हीरा-सोना-लोहा-कोइला
कोरा तोर समाये
जँगल-झाड़ी ,नदिया-नरवा
चारोमुड़ा मन भाये
महानदी अरपा-पैरी मन
मारत हे किलकारी
राजिम-आरंग-भोरम-सिरपुर
तोर जस ल बगराये
सरगुजा-बस्तर अचरित करथे
मन भर तैं ,सम्हराये
हाथी ,चितवा-बघवा गरजय
कोइली राग मल्हारी
21 वें छत्तीसगढ़ राज्य स्थापना दिवस की बहुत बधाई 💐
पीयूष कुमार