भारत यायावर : अमर कृतित्व, यादगार व्यक्तित्व
अग्रज भारत यायावर की विनोदप्रियता और ठिठोली हिंदी साहित्य की निर्माता-पीढ़ी के महाकवि जयशंकर प्रसाद, महाप्राण निराला, मैथिली शरण गुप्त जी और आचार्य हज़ारीप्रसाद द्विवेदी सरीखे व्यक्तित्वों के प्रसिद्ध विनोद-प्रसंगों की याद दिलाती थी.
यहां पढ़िए भारत यायावर जी की लिखी एक विशिष्ट विनोद रचना !
इसमें उन्होंने मुझे भी पात्र बना डाला और ठिठोली की कोशिश की थी. इसे उन्होंने पहले फेसबुक पर पोस्ट किया और बाद में 14 अगस्त 2021 को वाट्सएप पर मुझे पोस्ट किया था.
उनका साहित्यिक योगदान तो अमर है ही, ऐसा सतरंगा व्यक्तित्व भी भला कैसे कभी भूलेगा!! 🙏🙏
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जन्नत कौन जाएगा?
भारत यायावर
कुछ कवि मित्रों के साथ मैं इलाहाबाद जा रहा था । इसका नाम अब प्रयागराज हो गया है, लेकिन हमलोग अब भी इसे इलाहाबाद ही कहते हैं । इस प्रसंग पर मेरे प्रिय और प्रखर कवि श्याम बिहारी श्यामल ने कहा, ” छुटती नहीं है ग़ालिब मुँह की लगी हुई ।” तात्पर्य यह है कि आदत को बदलना मुश्किल है । मुश्किल है जन्नत और जहन्नुम की दुहाई देने को बदलना । श्यामल ने आगे कहा, ” कितना अजीब है, एक पैग लेते ही जन्नत पहुँच गये और रोज-रोज पीकर जहन्नुम चले गये !”
ट्रेन जब मिर्ज़ापुर पहुँची तो एक लम्बी दाड़ी वाले मौलाना हमलोगों की महफ़िल में शामिल हो गये । उन्होंने आते ही तकरीर देना शुरू कर दिया । वे हर बात पर जन्नत की दुहाई दे रहे थे । उनमें आत्मविश्वास इतना था कि ‘ बेशक’ उनका तकियाकलाम था । मैंने उनसे कहा कि हकीकत में जन्नत होता ही नहीं !
वे बिगड़ गए, ” अमा यार ! कैसी बात कर रहे हो ? मैं आलिमोफाजिल हूँ । मेरे से ज्यादा इस विषय में तुम जानते हो ? इस जहां में रहकर जन्नत को ही तो पाना है और फ़ानी ये ज़माना है! ”
मैंने कहा, ” लेकिन मिर्ज़ा ग़ालिब ने कहा है कि
हमें मालूम है जन्नत की हकीकत लेकिन
दिल बहलाने को ग़ालिब ये ख्याल अच्छा है! ”
मौलाना गुस्से से लाल-पीले हो गए । बोले, ” मिर्ज़ा ग़ालिब पियक्कड़ था । उसे क्या मालूम । जन्नत है! जन्नत है! जन्नत है! बेशक जन्नत है ।”
मैंने पूछा, ” चलिए मान लिया जन्नत है! लेकिन जन्नत में क्या-क्या है?
मौलाना ने कहा ,” जन्नत में अल्लाह रहता है और एक से एक हूर रहती है ।”
तब मैंने बात को मोड़ देते हुए कहा , ” लेकिन यह बात आपको कैसे मालूम है? ”
” मैं मौलाना हूँ, आलिमोफाजिल हूँ । बेशक मुझे सब कुछ मालूम है! ”
तब हिन्दी के प्रसिद्ध गजलगो चाँद मुंगेरी ने कहा, ” लेकिन मीर ने तो कहा है :
उस जन्नत में कौन जाएगा भला मीर
जहाँ लाखों साल पुरानी हूरें रहती हैं
मौलाना ने कहा, ” अमा यार , मीर की शायरी को कौन पूछता है! मान लो हूरें लाखों साल पहले की हैं लेकिन बेशक खूबसूरत और जवान भी तो हैं! ”
मैंने सोचा कि जब इस मौलाना को सब मालूम ही है तो क्यों न अपनी जिज्ञासा को प्रकट किया जाए । इस तरह सफर भी ठीक से कट जाएगा ।
मैंने पूछा, “मौलाना साहब, तब तो आपको यह भी मालूम होगा कि जन्नत में कौन जाएगा ?”
मौलाना ने डटकर उत्तर दिया , ” बेशक मुसलमान ही जाएगा I”
तब मैंने पूछा , ” ठीक है! लेकिन कौन मुसलमान? शिया या सुन्नी.?”
मौलाना ने कहा, ” बेशक सुन्नी ,जनाब।”
फिर मैंने पूछा, “जी सुन्नी में कौन? मुकल्लिद या गैर-मुकल्लिद ?”
मौलाना ने कहा , ” बेशक मुकल्लिद !”
आगे का सवाल थोड़ा मुश्किल था । मैंने फिर पूछा , “जी, मुकल्लिद में तो चार हैं। उनमें से कौन ?”
मौलाना ने इसका उत्तर भी बेधड़क दिया , “बेशक हनफी , और कौन?”
तब मैंने सबकुछ जानने वाले मौलाना से फिर पूछा, “जी, पर हनफी में तो देबबंदी और बरेलवी दोनों हैं । उनमें जन्नत कौन जाएगा? ”
मौलाना ने कहा, “बेशक , देबबंदी ही जाएँगे !”
“बहुत शुक्रिया, पर देबबंदी में भी तो हयाती और ममाती दोनों हैं, उनमें से कौन?”
मौलाना साहब इस सवाल पर उलझ कर रह गए । तब मैंने उनसे पूछा, ” अच्छा छोड़िए । यह बताइए कि बाकी लोग कहाँ जाएँगे? ”
मौलाना ने कहा, ” बेशक, जहन्नुम जाएँगे !”
तब श्यामल ने मौलाना से पूछा, ” ये जेहादी कहाँ जाएँगे ?”
” बेशक, जन्नत जाएँगे!”
इसपर राघवेन्द्र प्रणय ने अपनी बात को एक शेर में प्रस्तुत किया,
कत्लो-गारत से कोई हूर पा गया होता
तो जन्नत में आतंकियों का दबदबा होता
इसके बाद मौलाना साहब गायब हो गये ,वो दोबारा दिखे ही नहीं । लेकिन उनका ‘बेशक’ गूँजता रह गया और शक ही शक पैदा कर गया ।
महाकवि गिरिजा नन्द मिश्र ने तुरंत मौलाना पर एक शेर सुना दिया :
जन्नत-जहन्नुम छोड़कर मौलाना चले गए
दुनिया में शक की दीवार बनाकर चले गए
लेकिन मैंने कहा,
बेशक-बेशक कहते मौलाना तो चले गये
मौलाना की तरह खुदा की हालत खराब थी
वहीं कृष्ण पोरवाल बैठे थे । वे दुष्यंत कुमार की गजलें घोंटते रहते थे । मौलाना के जाने के पहले वे चुपचाप बैठे थे । अचानक वह दुष्यंत कुमार का यह शेर तरन्नुम में सुनाने लगे–
रौनके- जन्नत ज़रा भी मुझको रास आई नहीं
मैं जहन्नुम में बहुत खुश हूँ मेरे परवरदिगार
भारत यायावर
यशवंतनगर,
हजारीबाग 825301 झारखंड
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