ममता की नहीं रिहाई
मिमी’ मूवी देखने के बाद मां और मां की ममता पर जो विचार आये,मैंने ‘मिमी’ की स्क्रिप्ट पर मां की ममता को स्वरचित कविता से रेखांकित किया।
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रिश्ता मां का ममता से, दूर से दे जाए दिखाई
सहनशीलता की गठरी, ममता की नहीं रिहाई।
सरोगेट के नए जमाने, धन लालच रूपी पत्ता
निज शौक और सपना, दोनों पूरा हो अलबत्ता
जातक अपंग मंद बुद्धि, सूचना जैसे ही बताई
संतान प्राप्ति के दंपति, खुदाभरोसे रखे खुदाई
अपने वंशज से गए दूर, सरोगेट बेसुध चकराई
रिश्ता मां का ममता से, दूर से दे जाए दिखाई।
सहनशीलता की गठरी, ममता की नही रिहाई।
बेनाम जब पिता रहता, मिलती कलंक फटकार
घटना रूपी धागे से अब, बिगड़ी किस्मत सुधार
गोरा सुंदर बालक देख, दंपत्ति फरियाद भरमाई
लाडला तो हमारा ही है, विविध तर्क भरी दुहाई
पर मां सिर्फ मां रहती, और ममत्व एक भलाई
रिश्ता मां का ममता से, दूर से दे जाए दिखाई।
सहनशीलता की गठरी, ममता की नहीं रिहाई।
पाने अपने बालक को, बहुत करारे चलते जोर
घर परिवार समाज गांव, ‘मिमी’ ‘राज’ का शोर
ममता की देवी जीत गई, देवी ने ही राह सजाई
मां आशियाने में रहती, जातक की सभी दवाई
सुख दुख सदा परे रहते, कोख पले की सच्चाई
रिश्ता मां की ममता से, दूर से दे जाए दिखाई।
सहनशीलता की गठरी, ममता की नहीं रिहाई।
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रचयिता: कवि विजय कुमार गुप्ता
दुर्ग छ ग