चंदैनी गोंदा के कलाकार श्री विजय दिल्लीवार “वर्तमान” की कलम से – जनकवि लक्ष्मण मस्तुरिया
आज 3 नवंबर है ।सन 2018 को आज ही के दिन छत्तीसगढ़ ने अपना अनमोल रतन खोया था ।
ऐसा रतन , जिसकी चमक कभी फ़ीकी नहीं पड़ने वाली ।
आइए , आज हम उस रतन की आभा को निहारें …….
मस्तुरिया लक्ष्मण : रतन असाधारण
लक्ष्मण भाई के नाम के साथ ‘ दिवंगत ‘ या ‘ पुण्यतिथि ‘ जैसे शब्द बेहद अविश्वसनीय , असंगत और आपत्तिजनक लगते हैं । नितांत स्वस्थ और सक्रिय रहते हुए ही वे हमसे अनायास रुख़सत हो गये थे । उनकी उपस्थिति हम आज भी अपने आसपास महसूस करते हैं । हर छोटे – बड़े अवसर पर बेसाख़्ता याद आने वाली उनकी शब्द- रचनाएँ और रागिनियाँ उनके ज़िन्दा होने का प्रमाण हैं । ‘ दिवंगत ‘ शब्द लक्ष्मण भाई पर लागू नहीं होता ।
मात्र तेईस वर्ष के थे वे , जब चंदैनी – गोंदा में उनका पदार्पण हुआ था । 29 जनवरी 1972 को ग्राम – पैरी के कार्यक्रम में लोक – मनभावन गीतों को मिट्टी की मौलिक तासीर वाले गले के साथ जनता ने सुना और आश्चर्यजनक रूप से रातों – रात उस शब्द – रचनाकार और आवाज़ के मालिक की दीवानी हो गयी । लक्ष्मण भाई की आवाज़ की विलक्षणता , ताजगी , माटी का स्वाद और सुगंध अंचल के लिए बेहद चौंकाने वाला था । कविताई और गायकी दोनों ही सबको सगे और आत्मीय लगे । सुनकर लगा कि यही तो है छत्तीसगढ़ का कंठ । लक्ष्मण भाई के गीतों और गायकी में लोगों को छत्तीसगढ़ की आत्मा के दर्शन होने लगे । अंचल निहाल हो गया ।
अंचल में लक्ष्मण भाई की स्वीकार्यता हैरत – अंगेज़ थी ।आलम यह था कि सभी छत्तीसगढ़ी गायक उनके जैसा गाना चाहते थे , सभी छत्तीसगढ़ी कवि उनके जैसा लिखना चाहते थे । वे नवोदित गायकों और कवियों के लिए प्रातः – स्मरणीय हो चले थे । संदर्भवश बता दूँ कि हमारे सुरेश भैया भी ऐसे मंच – संचालक और उद्घोषक थे , जिनकी नकल सारे मंच – संचालक करना चाहते थे । चंदैनी – गोंदा ऐसे ही अद्वितीय नहीं हो गया था ।
इतनी कम उम्र में इतनी सर्वव्यापी , प्रचण्ड लोकप्रियता का कोई अन्य उदाहरण मेरे पास नहीं है । यदि आज वे हमारे बीच होते तो मेनका वर्मा पहला साक्षात्कार उन्हीं का लेतीं ।
उन दिनों लक्ष्मण भाई बेहद मासूम ,सरल ,आडम्बरहीन , संकोची , मितभाषी और विनम्र थे । वे युवा से ज़्यादा किशोर लगते थे । वे चुपचाप अपने आसपास को देखते , सुनते और समझते रहते थे । बेशक उनकी स्याही में सरस्वती घुली हुई थी और गले में गन्धर्व । वे मंच और दृश्य की ज़रूरत के मुताबिक अतिशीघ्र बेहद प्रभावी गीत रचते थे । मैंने उन्हें कभी कागज़ – कलम लेकर लिखते हुए नहीं देखा । जाने कब लिखते थे । वे एक ही समय में भिन्न – भिन्न मूड के गीत समान स्तर और समान प्रभाव के साथ लिख लेते थे । लक्ष्मण के गीतों की गुणवत्ता जितना स्तरीय है , उतना ही उनकी मात्रा भी चकित करने वाली है । उनका लिखना न कभी कम हुआ , न बन्द हुआ । वे हर मुलाक़ात में नयी रचनाओं से लैस होते थे ।
मैंने कभी उन्हें सर्दी , जुकाम , बुखार की चपेट में आते नहीं देखा । वे आश्चर्यजनक रूप से सभी प्रकार के व्यसनों से सर्वथा अछूते थे । बीड़ी , सिगरेट , पान , तम्बाकू तो दूर की बात है , वे चाय भी नहीं पीते थे , साथ ही विशुद्ध शाकाहारी थे । सम्भवतः उनके उत्तम स्वास्थ्य के पीछे उनका अद्भुत आत्मसंयम और नियमित योगाभ्यास था ।चंदैनी – गोंदा में आने से पहले ही वे संत पवन दीवान , कृष्णा रंजन और उनकी मित्र – मंडली के सदस्य थे । सम्भवतः उन्हीं की संगत और प्रभाव में योग उनके जीवन का अंग बना था ।
हम बघेरा में लगभग रात – भर रिहर्सल करके तीसरे पहर सोया करते थे । फलतः सुबह उठने में हम सबको देरी हो ही जाती थी । लेकिन लक्ष्मण भाई योग करने के लिए बहुत सुबह ही बिस्तर छोड़ देते थे । बघेरा की हवेली में उनका निज़ी कक्ष था । वे वहीं लगभग घण्टा भर योग करते थे , धैर्यपूर्वक , पूरी तल्लीनता के साथ । उन्हें योग करते हुए देखना मुझे अच्छा लगता था । मुझे रुचि लेता देख वे उत्साहित होकर मुझे समझाते हुए अभ्यास करते थे । उनके साथ सर्वांगासन , हलासन , मयूरासन , सुप्तवज्रासन , भुजंगासन आदि मैंने भी सीख लिए थे । सेवानिवृत्ति के पश्चात मैंने सेक्टर 10 , भिलाईनगर के योगाश्रम में योग प्रशिक्षण लिया और अभी बेंगलुरु में निःशुल्क योग करवाता हूँ । लक्ष्मण भाई आज होते , तो कितना प्रसन्न होते ।
रोमांचक बात यह कि लक्ष्मण भाई अपने नासिका – छिद्रों से पानी पी लेते थे । यह जलनेति के समान ही क्रिया है । उनका विश्वास था कि वे इसी अभ्यास के कारण सर्दी – खाँसी जैसे श्वसन तंत्र की बीमारियों से बचे रहते हैं । वे अपने गले की गुणवत्ता के लिए भी इसी अभ्यास को श्रेय देते थे । मुझे भी उन्होंने नाक से पानी पीना सिखा ही दिया था । मैं आज भी सर्दी – जुकाम होने पर गुनगुने नमक – जल के साथ यह क्रिया कर लेता हूँ और अपने योगर्थियों को भी इसकी सलाह देता हूँ । दुःखद आश्चर्य है कि लक्ष्मण भाई के योगाभ्यासी शरीर ने उन्हें असमय ही धोखा दे दिया । अफ़सोस ।
प्रारंभ के संकोची और मितभाषी लक्ष्मण भाई बाद के दिनों में अन्याय और अनीति के ख़िलाफ़ मुखर हो गये थे । ग़लत बातों पर वे अविलंब प्रतिक्रिया व्यक्त करते थे और कभी – कभी तल्ख़ भी हो जाते थे । उनकी असहमतियाँ अनेक मंचों पर बेलागी और निर्भीकता के साथ अभिव्यक्त हुई हैं । बेईमानी , छल – कपट और चालाकी उनसे बिल्कुल बर्दाश्त नहीं होती थी , लेकिन जहाँ नेकनीयती होती थी , वहाँ वे बेहद सहिष्णु , उदार , मित्रवत और क्षमाशील होते थे । कविसम्मेलनों में पारिश्रमिक को लेकर कभी उन्होंने तक़रार नहीं किया , ऐसा रवि श्रीवास्तव बताते हैं ।
वे न तो तथाकथित ‘ ख़ास ‘ के प्रभाव में आते थे और न ही तथाकथित ‘ आम ‘ पर रौब गाँठते थे । सरल के साथ अति सरल और कठिन के साथ अति कठिन हो जाना उनकी आंतरिक विशेषता थी ।
धीरे – धीरे वे छत्तीसगढ़ – मय होते चले गए । उनकी हँसी छत्तीसगढ़ की खुशहाली के साथ जुड़ी थी और आँसू छत्तीसगढ़ की बदहाली के साथ संलग्न थे । उनका विद्रोह छत्तीसगढ़ के शोषण के ख़िलाफ़ था । उनका जुझारूपन छत्तीसगढ़ की मुकम्मल मुक्ति के लिए था । वे छत्तीसगढ़ की आवाज़ तो थे ही , छत्तीसगढ़ की पहचान भी बन चुके थे ।
लक्ष्मण भाई निर्विवाद रूप से निर्विकल्प ‘हैं ‘ ।
चंदैनी – गोंदा परिवार में प्रमोद यादव के साथ उनकी गहरी मित्रता थी । प्रमोद भाई उनके अनेक अनदेखे , अनछुए पहलुओं से अवगत हैं । प्रमोद भाई जब भी उचित समझेंगे , उद्घाटन की मुद्रा अख़्तियार करेंगे और हम लक्ष्मण भाई के क़िरदार से अधिक परिचित हो सकेंगे ।
चंदैनी – गोंदा के बाद के लक्ष्मण को जानने में अरुण निगम हमारी मदद करते रहे हैं । उनका आभार ।
मैं चंदैनी – गोंदा परिवार के अपने सभी साथियों की ओर से भावुक स्मरण करते हुए लक्ष्मण भाई को श्रद्धा- सुमन अर्पित करता हूँ ।
नमन!
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विजय वर्तमान
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