“कौन सच्चा है कौन है झूठा”
कौन सच्चा है कौन है झूठा ।
आकर दुनिया वालों को बता।।
जन्नत में सब कुछ है सिवा मौत के ,
बेमौत मर रहे हैं जहां में सारा जहां।
गीता में सब कुछ है झूठ नहीं !
दुनिया में सब कुछ है सुकूं नहीं!!
इंसान को जो तूने बनाया है ,
सब कुछ है सब्र नहीं जरा सा ।
कौन सच्चा है कौन है झूठा ।
आकर दुनिया वालों को बता।।
इंसानों में ही एक चेहरा एक मूरत !
‘मां’ कहते हैं जिसे बहुत खूबसूरत!!
तुमसे भी ज्यादा करूणा ममता ,
अथाह सागर असीम तूफां भरा ।
कौन सच्चा है कौन है झूठा ।
आकर दुनिया वालों को बता।।
फूलों में ‘कपास का फूल’ ही भा गया !
वर्षा से भीगी मिट्टी की सुगंध छा गया!!
जो मिठास तूने ‘वाणी’ में भरी है ,
दुनिया में नहीं कुछ ‘वाणी’ से मीठा।
कौन सच्चा है कौन है झूठा ।
आकर दुनिया वालों को बता।।
‘मां’ का दूध का कर्ज याद रहेगा सदा !
यही धर्म यही संस्कार जग में यदा यदा!!
सबसे काला ‘कलंक’ को बताया ,
‘पाप’ पृथ्वी से भी भारी सदा सदा।
कौन सच्चा है कौन है झूठा ।
आकर दुनिया वालों को बता।।
सबसे सस्ता कर दिया तूने ‘मशवरा’ !
महंगे वातावरण में ‘सहयोग’ का डेरा!!
कैद खानों में इंसानियत की सत्ता ,
कैद खानों में इंसानियत की सत्ता ।
कौन सच्चा है कौन है झूठा ।
आकर दुनिया वालों को बता।।
स्वरचित एवं मौलिक
मनोज शाह ‘मानस’
सुदर्शन पार्क,
नई दिल्ली
मो.नं.7982510985