तुम्हारे बिना अधूरा हूँ मैं…….
“तलाक केस के नियमानुसार आप दोनों को सलाह दी जाती हैं कि एक बार काउंसलर से मिलकर आपसी मतभेद मिटाने की कोशिश करें।” तलाक केस की सुनवाई करते हुए जज ने कहा।
अगले ही मंगलवार सुषमा और अजीत दोनों काउंसलिंग सेंटर पर जाते है। सुषमा के साथ उसके भैया-भाभी तो अजीत के साथ उसके कुछ दोस्त थे। काउंसलर ने सिर्फ सुषमा और अजीत को अंदर आने को कहा। अंदर आते ही काउंसलर ने पूछा – “आप दोनों अपनी मर्जी से तलाक चाहते है या किसी के बहकावे / दबाव में आकर।” दोनों को चुप देखकर काउंसलर ने कहा, “यही टेबल पर बैठकर थोड़ी देर आपस में बात कर लीजिएं आप दोनों”।
टेबल पर बरकरार चुप्पी को तोड़ते हुए अजीत ने पूछा – “कैसी हो, सुषमा ?”
“ठीक हूँ, आप कैसे हो? खाना और दवा इत्यादि टाइम पर खाते हो न, आपका हेल्थ डाउन दिख रहा ?”
“हाँ, तुम्हारे नाराज होकर जाने के बाद ज़िम्मेदारी एवं तनाव दोनों बढ़ गया। आज भी बहुत मिस करता हूं तुम्हें।”
“मैं भी आपको बहुत मिस करती हूं, पर…..।”
“पर क्या, सुषमा ?” अजीत ने सुषमा के हाथों पर हाथ रखते हुए पूछा।
“अजीत, मैं अपने घर की सबसे छोटी बेटी हूं सभी ने मुझे काफी लाड़-प्यार दिया है। कभी किसी चीज कमी नहीं रही मुझे।”
“हाँ, तो फिर सुषमा .……..!”
“छोटे के कस्बे में रहने और साँस-ननद के रोका-टोकी के साथ इतनी जिम्मेदारी मेरे से नहीं हो पाती। फ्री लाइफ जीना पसंद किया है मैंने हमेशा।”
“इसमें क्या सुषमा !, तुम्हारे साथ मैं हूँ न, कुछ दिन एडजस्ट कर लेती, धीरे-धीरे तुम उन्हें समझती और वह लोग तुम्हें।”
“पर अजीत, मैने तुमसे शादी की है, तुम्हारे साथ रहना पसंद करूंगी।”
“ठीक है सुषमा, मैं भी तुम्हें अपने साथ रखना चाहता हूं और रही बात छोटे के कस्बे में रहने की तो वहाँ तुम्हें रहना ही कितने दिन था, मेरे छुट्टियों के दिन में मेरे साथ या फिर कभी-कभार किसी जरूरत पर कुछ दिन या माह मेरे बिना। बाकी समय मेरे साथ रहना था तुम्हें।”
“फिर भी अजीत…….!”
“फिर भी क्या,तुम्हारे मन में कोई बात थी तो मुझसे कहती, नाराज होकर तुम्हारा मायके चले आना कितना सही है, सुषमा?”
“मैंने आपको कॉल किया था बताने के लिए । लेकिन आप ना मुझे समझ पाए, ना मेरी इच्छाओं को”
“सुषमा उस दिन मैं मीटिंग था। कांफ्रेंस रूम में होने के बावजूद मैंने तुमसे बात की । सोचा शाम को घर पहुंच शांति से दुबारा बात करूंगा तुमसे । शाम को कई बार तुम्हें फ़ोन किया पर लगा नहीं । माँ से पूछा तब पता चला तुम भैया के साथ मायके चली आई। कई बार मैने तुमसे बात करने की कोशिश किया। तुम्हारे भैया-भाभी को भी फ़ोन किया था मैने l तब जाकर पता चला तुम मुझसे बात नहीं करना चाहती।” अपनी बात आगे कहते हुए अजीत ने कहा- “तुम्हें मनाकर वापस ले आने के लिए मैंने अगले महीने सहारनपुर आने का भी प्लान किया था। लेकिन उसके पहले नोटिस मिल गई मुझे तलाक की।”
” पर अजीत, .…….!”
“पर क्या सुषमा, तुम बात करने को तैयार नहीं थी, बिना बात किए हमारे बीच नाराजगी कैसे ख़त्म होती ? कैसे भूल गई तुम ?…पहली बार जब सहारनपुर में तुमसे मिला था और कुछ पल के मुलाकात में तुम्हारे हाथ को पकड़ते हुए मैने कहा था कि ये हाथ पकड़ रहा हूं मेरे आखिरी सांस तक छूटने मत देना अपने हाथों को, हमेशा मेरे साथ रहना। आज उसके कुछ ही महीने में हमारा रिश्ता टूटने के कगार पर आ गया?”
“मैं भी आपको छोड़ना नहीं चाहती हूं, पर शादी के बाद मुझे बहुत सी चीजें पसंद नहीं आई। जैसे तुम्हारे बिना कस्बों की लाइफ इत्यादि।”
“जो चीजें पसंद नहीं आई उस पर हम दोनों बात करते तो उसका कोई न कोई हल जरूर निकल आता। रिश्ते बरक़रार रखने के लिए कुछ तुम कहती कुछ मैं….हम दोनों समझते एक दूसरे को ….! आखिर मेरे विश्वास पर तुम अपना घर परिवार छोड़ यहाँ आई थी। जो समस्याएं थी उस पर बात करते हम दोनों बड़े बुजुर्गों ने भी कहा है कि बड़ी से बड़ी समस्या का समाधान आपसी संवाद से निकल आता है। बातचीत बंद न होने के कारण आज हमारे रिश्ते खत्म करने के कगार पर आ गए।” दुखी स्वर में अजीत ने अपनी बात खत्म की।
“मैने आपसे शादी किया है आपके साथ रहने के लिए। आपके मम्मी पापा चाहे तो हमारे साथ आकर रह सकते हैं चंडीगढ़ में ।”
“क्या लगता है तुम्हें सुषमा, मुझे तुम्हारे बिना अच्छा लगता है? टिकट तुम्हारा भी कराया था मैंने साथ आने के लिए लेकिन अचानक से मम्मी की तबीयत खराब होने के कारण मुझे अकेले आना पड़ा। मेरी पत्नी होने के साथ-साथ तुम उनकी बहू भी हो। जरूरत के वक्त दोनों को दोनों के परिवार को अपना मानकर उनके साथ होना जरुरी हैं। मम्मी के डॉक्टर खुराना से मेरी बात हुई हैं । डॉक्टर साहब बोल रहे थे कि एक से दो महीने के अंदर मम्मी चलने फिरने लायक हो जायेंगी।”
“ये तो बहुत अच्छी खबर है अजीत, चिंता मत करो आप भगवान जल्दी ठीक कर देंगे मम्मी जी को। वैसे आगे क्या करने सोचा है आपने।”
“सोचना क्या सुषमा, मैंने तुमसे प्यार किया है। मैं तुम्हें पसंद करता हूँ ये बात घर पर बताकर सबको राजी किया था मैंने शादी के लिए। बस दुःख इतना है कि ये रिश्ता मैं बचा नहीं पाया।” – अजीत ने अपनी बात को विराम देते हुए कहा।
“इतना होने पर भी आज क्या आप मुझसे उतना ही प्यार करते हो ?” – सुषमा ने पूछा ।
” हां सुषमा, भले ही कल हमारे रिश्ते नहीं रहेंगे पर तुम्हारे साथ बिताए हर एक पल का अहसास मेरे साथ रहेंगे ।”
“अच्छा ठीक है, चलो अब मैं चलती हूँ। भैया-भाभी इंतजार कर रहे होंगे, लेट हो रहा मुझे अब।”
“ओके सुषमा अपना ख्याल रखना ! सोचा था बात करके सब ठीक कर लूंगा। पर कोई बात नहीं, कोर्ट के अगली तारीख को कोर्ट नहीं आऊंगा मैं । डाक से भिजवा देना पेपर मैं साइन कर दूंगा तलाक के पेपर पर।”
“ओके मत आना ! आपको आने की जरूरत भी नहीं हैं लेकिन हो सके तो सहारनपुर आ जाना मुझे ले जाने के लिए। ”
“क्या ….क्या…. क्या कहा तुमने सुषमा ? ” अजीत ने आश्चर्यचकित होकर पूछा।”
“वही जो आपने सुना, मैं भी आपके फोन को नजरअंदाज न करती तो ये मसला आपसी सहमति से कब का सुलझ गया होता। रिश्ते बचाने के लिए मैंने भी समय नहीं दिया और लोगों के बहकावे (रोका-टोकी) में आकर रिश्ता तोड़ने की सोच ली।”
“वही सुषमा, ब्याह कर तुम्हें मैं लाया हूं। तुम्हें खुश रखने की जिम्मेदारी मेरी है। लेकिन उन जिम्मेदारियों के साथ हमें इस जीवन के सफर में अनेक जिम्मेदारियों का रोल अदा करना होता है और इसमें हमें एक दूसरे का पूरक बनना होगा। वादा करो आगे फिर कभी जीवन के इस सफर में लड़खड़ाई तो मुझे अकेला छोड़कर वापस नहीं जाओगी बल्कि एक आवाज देकर मेरा हाथ थामकर साथ चलोगी।”
“ठीक है बाबा, अब वादा करती हूं मैं, कभी नाराज होकर नहीं जाऊंगी। तुम भी अब थोड़ा सा स्माइल दें दो।” – सुषमा ने कहा ।
इतने में अजीत सुषमा को गले लगाते हुए बोल पड़ा, “पगली कभी छोड़ के मत जाना। तुम मेरी अर्धागिनी (आधा अंग) हो और तुम्हारे बिना अधूरा हूं मैं। आई लव यू सोना, बाबू……।”
अंकुर सिंह
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