“कागज और कलम जैसा…”
कितना घनिष्ठ है
हमारा संबंध…
कागज और कलम जैसा…!
हृदय के सारे घाव
और मन के सारे भाव
कागज पर उतार दे…
कागज तो
कलम का हर
उतार…चढ़ाव को
समझता है,
परखता है…!
एकांत में अगर…,
कहीं खो जाऊं…
शून्यता में…,
शब्दों को
चुन लूं…! बून लूं…!!
गढ़ लूं…! रच लूं…!!
अगर…,
मेरी भावनाओं को
कदर करने वाले है
तो वो तुम्हीं हो…!
अतः मेरा प्रत्येक कदम
अगर…सफलता
चूमना चाहता है…!
तो…तुम्हारा ही
सहारा चाहता है…!!
दुनियादारी का
परवाह नहीं करता है ।
सिर्फ… सिर्फ
भावनाओं को ही पूजता है ।।
घनिष्ठ संबंध है हमारा…,
कागज और कलम जैसा…!
स्वरचित एवं मौलिक
मनोज शाह ‘मानस’
नई दिल्ली-110015
मो.नं.7982510985
28.11.2021