November 23, 2024

साहित्य के स्टीफन हॉकिंग्स -“रजत कृष्ण”

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किसी कवि ने क्या खूब लिखा है कि-
“पंक्षी अगर तुम्हें है अपने पंखों पर विश्वास।
तो तुझको न डिगा सकेगा ये विशाल आकाश।”
कविता की उक्त पंक्तियों को पढ़कर क्षणिक रूप से उत्साहित होना जितना सरल है उससे लाखों गुना कठिन है उत्साह को जीवन पर्यन्त बनाये रखना। यह तो बिल्कुल सत्य है कि आत्मविश्वासी व्यक्ति अपने परिश्रम से पत्थर में फूल खिला सकता है और रेत से तेल निकाल सकता है। बंजर जमीन में हरियाली ला सकता है और मरुस्थल को गुलिस्तान बना सकता है। एक ऐसा ही प्रेरक व्यक्तित्व है जिसे साहित्य जगत कवि रजत कृष्ण के नाम से जानता और पहचानता है। रजत कृष्ण को साहित्य का स्टीफन हॉकिंग्स कहें तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।
रजत कृष्ण जी का जीवन संघर्ष की जीवंत दासता और लाखों निःशक्त जनों के लिए प्रेरक है। हमारे और आपके लिए यह कल्पना करना भी मुश्किल है कि व्हील चेयर पर बैठा हुआ कोई व्यक्ति राष्टीय ख्याति प्राप्त कवि और लेखक के साथ चर्चित पत्रिका सर्वनाम का सम्पादक भी हो सकता है। हिंदी का सहायक प्राध्यापक हो सकता है।
ऐसा नहीं है कि रजत कृष्ण जी बचपन से ही व्हील चेयर पर हैं। उन्होंने विद्यालयीन और स्नातक स्तर तक महाविद्यालयीन पढ़ाई सामान्य बच्चों की तरह उछलते-कूदते, साइकिल चलाते हुए पूरी की । उसके बाद प्रकृति को शायद रजत भाई के आत्मविश्वास की परीक्षा जो लेनी थी इसलिए उन्हें मेथोपैथी ( मांसपेशियों का क्षरण) की गम्भीर और लाइलाज बीमारी ने घेरना शुरू कर दिया। जिस अनुपात में उनकी शारीरिक निःशक्तता बढ़ती गई उससे हजारों गुना ज्यादा उनकी बौद्धिकता प्रखर होती गई। रजत भाई ने अपनी निःशक्तता को ही अपना हथियार बनाकर जीवन संग्राम की लड़ाई लड़ते हुए विजय पताका फहराने में सफलता हासिल की है। आज उनकी ख्याति छत्तीसगढ़ के बागबाहरा से निकलकर पूरे देश में फैल चुकी है।
एक भेंट में रजत भाई ने बताया कि बी. काम. तक शिक्षा प्राप्त करते हुए उनका जीवन औरों की तरह सामान्य ही था। संघर्ष उसके बाद शुरू हुआ। निःशक्तता के कारण आगे की पढ़ाई बाधित हो गई और वे स्टेशन चौक के अपने घरेलू पान की दुकान पर बैठकर दुकानदारी करने लगे। यहीं पर पत्र-पत्रिकाओं को पढ़ते हुए साहित्य के प्रति अनुराग जागृत हुआ और वे लिखने लगे। फिर उन्होंने हिंदी साहित्य में एम. ए. की। विष्णुचन्द्र शर्मा और उनका रचना संसार विषय पर पी . एच. डी. की उपाधि प्राप्त की । पी.एस. सी. की परीक्षा में चयनित होकर हिंदी के सहायक प्राध्यापक बने। वर्तमान में रजत भाई बागबाहरा के महाविद्यालय में कार्यरत हैं।
छतीसगढ़ के धमतरी के निकटस्थ ग्राम लिमतरा मे 26 अगस्त 1968 को रजत भाई का जन्म हुआ।
रजत जी की प्रखर लेखनी और वैचारिक लेखों का ही कमाल है जो सूत्र और संकेत जैसी पत्रिकाओं ने उनकी कविताओं पर केंद्रित अंक निकाले।
पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय रायपुर में एम. फिल. के तहत ‘छत्तीसगढ़ की युवा कविता में रजत कृष्ण का अवदान’ विषय पर 2004 में लघु शोध एवम 2010 में रजत कृष्ण: रचनात्मकता का जीवन और जीवन की रचनात्मकता विषय पर पी एच डी कार्य हुआ है।
विभिन्न सम्मानों सम्मानित और अलंकरणों से अलंकृत रजत भाई सही अर्थों में मन के विजेता और हम सबके लिए प्रेरक है। अभी रजत भाई को सप्तपर्णी सम्मान मिलने जा रहा है, इसके लिए रजत भाई को हार्दिक बधाई।

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