उम्मीद और भरोसा
उम्मीद और भरोसा
कच्ची मिट्टी के मेरे मन को
चाक पर चढ़ा लेना।
हाथों के स्पर्श से ,
आकृति जैसी चाहो बना लेना।
भावनाओं का रंग बनाकर,
मेरे अंतर्मन को रंगा देना।
इल्तज़ा बस इतनी सी,
कच्ची मिट्टी की मैं कलसी,
ठेस कभी न लगा देना।
ठेस लगी तो बिखर जाऊँगी,
वापस वैसी न बन पाऊँगी।
सादगी मुझको अच्छी लगती है,
फरेब न मुझको न दगा देना।
कच्ची मिट्टी की मैं कलसी,
ठेस कभी न लगा देना।
मासूम सा नन्हा सा दिल,
मुहब्बत से इसको बसा देना।
ख़्वाहिश नहीं चाँद सितरों की,
जमीं पर छोटा सा घर बना देना।
उम्मीद यहीं है भरोसा यहीं है,
दो सूने जिंदगियों को मिला देना।
दीपा साहू “प्रकृति”
रायपुर (छत्तीसगढ़)