कहानी – मनहूस
आज वह बाहर निकल कर खुशी से फूला ना समा रहा था और हो भी क्यों ना पिछले नौ महीनों से वो और उसकी बहन छुटकी इसी दिन का तो इंतजार कर रहे थे कि कब वो दोनों बाहर की दुनिया में कदम रखें और वहां एक साथ रहें, एक साथ खाएं खेलें ।जैसे पिछले नौ महीनों से वे दोनों रहते आए हैं। मगर उसकी खुशी अब थोड़ी चिंता में बदलती जा रही थी उसकी छुटकी अभी तक बाहर नहीं निकली थी। वह सोच रहा था कि क्यों उसकी बहन को बाहर निकलने में इतना वक्त लग रहा था।वह तो बोली थी कि बस मेरे पीछे पीछे वह भी आ रही है फिर अब तक बाहर क्यों नहीं आई।वह चीख-चीख कर सब से पूछ रहा था मगर शायद उसकी आवाज किसी तक नहीं पहुंच पा रही थी। सब आपस में एक दूसरे को कुछ अजीब सी नज़रों से देख रहे थे।ऐसे जैसे कुछ ग़लत हो गया हो, वो जो शायद नहीं होना था ।मैं चाह कर भी कुछ समझ नहीं पा रहा था। वे सब आपस में कुछ कह जरूर रहे थे लेकिन जैसे मेरी चीख उन तक नहीं पहुंच पा रही थी उसी तरह उनकी बातें भी मुझे समझ नहीं आ रही थी।मेरी व्याकुलता बढ़ती जा रही थी और छुटकी है कि बाहर आने का नाम ही नहीं ले रही थी। तभी काफी देर बाद उसे बाहर निकाला गया मगर यह क्या!वह तो एकदम शाँत थी। इतनी शांत तो वह कभी ना थी।कितनी बातें करती थी। एक पल को भी न चुप रहती और न एक जगह टिकती।कितना परेशान हो जाता था मैं कभी कभी उससे। पर आज इसे अचानक क्या हो गया है।क्यों ऐसी निढ़ाल पड़ी हुई है। मेरी तरफ देख भी नहीं रही है।मुझे समझ नहीं आ रहा था कि अभी कुछ देर पहले ही तो वह हंसती खेलती अंदर थी फिर अचानक इतनी शांत क्यों हो गई ।क्या वह भी शर्मा आँटी के बच्चे की तरह तो कहीं……..नहीं! नहीं! हे भगवान ये कैसे क्या हो गया और क्यों ? तो क्या मेरी छुटकी भी अब कभी नहीं उठेगी,मेरे साथ नहींं रहेगी ,नहीं खेलेगी ,कभी नहीं मुस्कुराएगी। तो अब मैंं किसके साथ रहूंगा, किसके साथ खेलूंगा।इससे तो हम अंदर ही अच्छे थे ।आज पहली बार मुझे डर का एहसास होने लगा। बिना छुटकी के यह उजली दुनिया मुझेे अंधकारमय लगने लगी। सभी लोग उदास दिखाई दे रहे थे। मुझे तो सब की उदासी दिखाई दे रही थी मगर मेरी उदासी कोई समझ नहीं पा रहा था। और कोई समझ पाये भी तो कैसे, मुुुझे मेरी छुटकी के सिवाए जानता ही कौन था यहां। मुझे लग रहा था कि मैंं वापस अपनी दुनिया में चला जाऊं या छुटकी के दुनिया में ।मगर दोनों का ही होना संभव नहीं था। तभी किसी ने मुझेे उठाकर मेरी मां के पास सुला दिया। मां का स्पर्श पाते ही मेरा सारा डर जाता रहा।एक पल को लगा मानो मेरी छुुुटकी मुुुझे प्यार से सहला रही है। माँ मुझे थपकी दे रही थी। शायद वो मुझे सुलाना चाह रही थी।मगर मेरी नींंद तो अब उड़ चुकी थी।मैैंं समझ नहीं पा रहा था कि मेेरी छुटकी आखिर मुझे अकेला छोड़कर क्योंं चली गयी। मेेेरी तरह वो भी तो कितनी खुश थी बाहर आने को तो फिर…….।सोचते सोचते कब मेरी आँख लग गयी पता ही नहीं चला। आँख खुली तो आने जाने वालों का ताँँता लगा हुआ था।मेरे आने की खुशी तो सब को थी मगर छुुुटकी के जााने का दुख सिवााय माँ के और किसी केे आँँखोंं मेे न दिखा।सहसा किसी का कहना कि “मनहूस खुद को खा गयी। जो हुआ अच्छा ही हुआ। जिंंदा रहती तो जाने किसको खा जाती शायद अपनी माँ या भाई को ही”……मनहूस! ये शब्द कुछ सुना सुना सा लगा।हाँ याद आया किसी ने पहले भी छुटकी के लिए ऐसा ही कुछ कहा था ।उनके घर कभी लड़की के पैदा होते ही उनकी बेेेटी चल बसी थी बस तब से ही सारी लडकियाँ उनके लिये मनहूस हो गयी थी।ऐसा ही कुछ समझाया था छुटकी ने मुझे। इसलिए जब भी वो माँ से मिलने आती छुटकी को भी एक न एक बार जरूर कह जाती।और छुटकी अक्सर उदास हो जाती ।ओह अब याद आया उसे कैैसे हमारे बाहर आने के कुुुछ समय पहले ही छुटकी ये शब्द अपने
लिए फिर सुनकर कितनी दुखी हो गयी थी।शायद उसे लगने लगा था कि कहीं उसकी वजह से सच मेें माँँ या मुझे कुुुछ हो न जाये। कहीं इसी कारण से तो नहीं वह मेरे गले में फँसते नाल को बार बार अपनी तरफ खींंच रही थी। नाल शायद उसके
गले को जकड़े जा रहा था मगर वो यूँ जता रही थी जैसे वह उसके साथ खेल रही हो।लोगों को भी मुझे ही पहले बाहर लाने की जल्दी थी। छुुुटकी के गले में फँँसते नाल की किसी को चिंंता ही नही हो रही थी। या फिर छुुुटकी नेे शायद जानबूझकर माँँ और मुझे बचाने …….ओह छुटकी ! ये तुमने क्या किया
लता देवी चौहान
(शिक्षिका ,समाचार वाचिका,आकाशवाणी रायपुर ,लेखिका,कवियत्री)
पिता का नाम -श्री .बी.आर.चौहान
माता का नाम -श्रीमति सुषमा चौहान
छत्तीसगढ़ नगर ,टिकरापारा
रायपुर ,छत्तीसगढ़
मो.नं- 9229655252