मेरे पीहर मेरे अंचल के फूल
सर हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय सागर..
पहाड़ियों पर बसा,
बुद्धिजीवियों का नगर!
नीचे तराई में
छोटा सा गांव ग्वालमंडी!
ताज्जुब होता है,
वह गांव सोता कब था?
देर रात तक,
ताड़ी पी कर लोकनृत्य करते,
नशे में झूमते,
फिर भोर होते ही
घर-घर दूध पहुँचाते ग्वाले!
मेरे स्मृतिपटल पर जो अंकित है,
उसे मैं रंगों में ढालती हूँ,
और फिर बहुधा मेरी कविता
उसी लोकनृत्य की धुन में फूटती है!
फिर चटकीं टेसू और
अमलताश की कलियां
ग्वालों का गांव
कब सोया होगा?
गोल घेरे में नाचते,
खंजड़ी की धुन पर
पैैर थिरके होंगे !!!
©निर्मला सिंह
मेरे पीहर मेरे अंचल के फूल
मेरे प्रिय चित्र