बढ़िया मनवा मेरा गाँव

किचबिच-किचबिच करे शहर,
उलझे लोग हैं उलझा डगर।
न हरियाली कोई छाँव,
बढ़िया मनवा मेरा गाँव।
तर्क पे भारी पड़े कुतर्क,
सांड घूमते हैं सुधी सतर्क।
सबके लगते हैं दाँव,
बढ़िया मनवा मेरा गाँव।
आत्मा सबकी मरी जा रही,
भावनाओं को घुन खा रही।
भारी बर्बरता के पाँव,
बढ़िया मनवा मेरा गाँव।
मेरे गाँव में सब अपने ,
सब के सब रिस्तों में सने।
न अनजाना कोई ‘नाव’,
बढ़िया मनवा मेरा गाँव।
कथनी-करनी एक रूप,
मन सुन्दर है भले कुरूप।
रहते मिल-जुल इक ठाँव,
बढ़िया मनवा मेरा गाँव।
ख़ुशी में हँसते, गम में रोते,
वर्गों में कम फ़ासले होते।
न कोई काँव-काँव,
बढ़िया मनवा मेरा गाँव।
टिकेश्वर
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