छोटे भाई की भावना
मनीषा- “देवर जी, आपने कभी भी अपने बड़े भाई से दुकान का किराया नहीं मांगा था, लेकिन शादी के बाद अपने किराया मांगना शुरू कर दिया। पांच साल से आप किराया ले रहे हैं। यह सब मेरी नई नवेली देवरानी की करतूत है। आते ही भाइयों के बीच मनमुटाव पैदा कर दिया।”
मोहन- “भाभी, भैया जब किराए की दुकान में थे तब मुझे पता था कि वह दुकान एक दिन खाली करनी पड़ेगी। मैंने दूरदर्शी बनकर भैया की खातिर बैंक से लोन लेकर दुकान खरीदी है। दुकान खरीदने के लिए मैंने फूटी कौड़ी भी भैया से नहीं मांगी। आप बीच में ममता को क्यों डाल रही है?”
मनीषा- “जाने भी दो, ममता ने ही आपको किराया मांगने के लिए उकसाया है। यह सब उसी की साज़िश है। बड़ी होशियार बनी फिरती है। मैं उसे अच्छी तरह जानती हूं।”
मोहन- “ममता मेरी जीवनसंगिनी है, फ़िर भी आज़ तक मैंने उसे यह नहीं बताया कि मैं इस दुकान का मालिक हूं, ताकि आपको उसके सामने कभी ओछापन महसूस न हो।”
मुकेश- “मोहन, तुम्हें मेरी आर्थिक स्थिति के बारे में भी सोचना चाहिए। इस वक्त मैं पैसों की कितनी तंगी में जी रहा हूं।”
मोहन: “भैया, आपने आज़ तक घूमने फिरने, होटलों में खाना खाने और नए कपड़ों के पीछे खर्च करने में कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। आपने कभी भी दूसरों के बारे में नहीं सोचा। आप पहले से ही सिर्फ़ अपने लिए ही जीते आएं हैं। बड़े होने का कर्तव्य तो कभी निभाया नहीं और मुझे सलाह दे रहे हैं! आप मेरी भावनाओं को कभी समझ नहीं पाएं। आप सिर्फ़ भाभी के इशारे पर ही चले हैं। अब आगे बहस करना व्यर्थ है। मैं जा रहा हूं, लेकिन इतना याद रखना कि एक दिन आपको अपनी गलती का एहसास ज़रूर होगा।”
थोड़ी देर के बाद दरवाजे की घंटी बजी। मुकेश ने दरवाजा खोला तो सामने एक आदमी खड़ा था। मुकेश ने उस अजनबी से पूछा- “कहिए, इस काम के लिए आप आए हैं?”
उस आदमी ने उत्तर दिया- “मेरा नाम आनंद श्रीवास्तव है। मैं सरकार मान्य पोस्ट एजेंट हूं। आपकी बेटी पूर्णा के नाम पांच साल पहले महीने के पंद्रह सौ रुपए का रिकरिंग खाता खुलवाया गया था। अगले महीने उसकी पांच साल की अवधि पूरी हो रही है। खाते में भरे हुए रुपए ब्याज के साथ आपकी बेटी के बचत खाते में जमा होंगे इसकी जानकारी देने के लिए आया हूं।”
मुकेश- “लेकिन हमने तो पूर्णा के नाम का कोई खाता नहीं खुलवाया!”
आनंद श्रीवास्तव- “यह खाता पांच साल पहले मोहन जी ने खुलवाया था और उस समय उन्होंने यह बताया था कि यह खाता उनकी भतीजी पूर्णा के नाम का है। पांच साल के बाद जब वह बड़ी हो जाएगी तब रुपये उसकी पढ़ाई लिखाई में काम आएंगे।”
आनंद श्रीवास्तव की बात सुनकर मुकेश गहरी सोच में पड़ गया। उसे बहुत ही पछतावा हुआ और अपनी पत्नी मनीषा से बोला- “आज़ हमने एक बहुत बड़ी गलती कर दी है। एक पाप निर्दोष भाई के दिल को दुखाने का किया है और दूसरा पाप छोटे भाई की निर्दोष पत्नी पर झूठा आरोप लगाने का किया है। पांच साल से हम घर की बहू की उपेक्षा करते आएं हैं।”
मनीषा की आंखों में भी आंसू आ गएं और वह बोली- “गलती मेरी ही है जो देवरानी के प्रति पूर्वग्रह के कारण आज़ तक आप दोनों भाइयों के बीच मनमुटाव पैदा करती रही और सारे दोष का आरोपण निर्दोष देवरानी पर करती रही।”
मुकेश और मनीषा शर्मिंदगी के साथ एक साथ बोल
उठे- “हम छोटे भाई की भावना को समझ नहीं पाएं।”
समीर उपाध्याय ‘ललित’
मनहर पार्क: 96/A
चोटीला: 363520
जिला सुरेंद्रनगर
गुजरात
भारत
9265717398
s.l.upadhyay1975@gmail.com