डॉ. प्रेमकुमार पाण्डेय की कविताएं
सबने फूल -फूल चुन लिए,मैं कांटे उठा लाया।
सब फूल झड़ गए,कांटों से कांटे निकालता रहा।।
उनकी मुट्ठी में चांद था, मैं सूरज से नहाता रहा।
वो जुगनुओं से खुश थे, मैं मशाल जलता रहा।।
उनको शिकायत थी, गुल- गुलशन को लेकर ।।
मैं अजीज़ों के बीच, वफादारी निभाता रहा ।।
वे ख्वाहिशों की चाह में,रिश्ते भुला गए।
मैं रिश्ते सहेजने में, खुदको लुटाता रहा ।।
सब जल्दबाजी में थे,अपने हिस्से खुशी लूट ली।
मैं टुकड़े- टुकड़े दर्द को,कविता बनाता रहा।।
सुप्रभात
डॉ प्रेमकुमार पाण्डेय
केन्द्रीय विद्यालय बीएमवाय चरोदा भिलाई
9826561819
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*मौन*
अमावस की
निस्तब्ध निशा को
जब भंग करते हैं
समवेत स्वर में
श्वानदल
तब वे
तोड़ते नहीं
निस्तब्धता को
खड़ा करते हैं
साम्राज्य भय का
बाहर का अंधेरा
बहुत सघन हो
समा जाता है
अंदर।
क्या जरूरी है?
हरदम
बोला ही जाए
सच
मंगल पाण्डेय की तरह
क्यों नहीं
लिखा जाए
रोटी पर?
ऐसा
तुम करो
हम करें
सब करें
आओ
कागज़ बचाएं
पेड़ बचाएं और
सच को महसूस करने दें
लोगों को।
क्या
बोलना,लिखना
इतना जरूरी है?
महसूसने से
सच छोटा हो जाता है?
वह
मौन है
है प्रखर वक्ता
कभी झूठ नहीं बोलता
इसलिए
वह अब नहीं बोलता।
सुप्रभात
डॉ प्रेमकुमार पाण्डेय
केन्द्रीय विद्यालय बीएमवाय चरोदा भिलाई
9826561819