मेरी ज़मीन मेरा सफ़र : ज़ज़्बात की शायरी
शायरी की परंपरा बहुत पुरानी है और काफी मथी जा चुकी है।फ़ारसी-उर्दू-हिंदी की यह परम्परा मुसलसल जारी है, और लोकप्रिय भी है।ग़ज़ल में दो पंक्तियों में प्रभावी ढंग से कथ्य को प्रेषित किया जाता है, जो बहुधा विडम्बनाबोध लिए होते हैं।यह शायर की उपलब्धि होती है कि वह इस विडम्बनाबोध को कैसे बेहरतीन ढंग से उदाहरणों, प्रतीकों से प्रस्तुत करता है।जाहिर है यह ‘क्षमता’ ही एक हद तक शायर की सफलता-असफलता निर्धारित करती हैं। दूसरी बात यह भी महत्वपूर्ण होता है कि शायर बदलते समय से कदम मिलाकर चल रहा है कि नही; यानी अपने समय की चिंताएं शायर को प्रभावित करती है कि नहीं।
श्री विनोद कुमार त्रिपाठी ‘बशर’ की शायरी जो कि इस संग्रह में ग़ज़ल और नज़्म के रूप में है; विविध रंगों से भरी हुई हैं। नज़्मों की अपेक्षा ग़ज़ल में वे अधिक सफल जान पड़ते हैं। शायरी की चिंताएं मुख्यतः शायर के सम्वेदनात्मक स्तर और जीवन अनुभव में आस-पास हुआ करती हैं। विनोद जी शायरी में इसलिए ‘आर्थिक चिंताएं’ कम दिखाई देती हैं; इसके बरक्स जीवन संघर्ष, प्रेम के द्वंद्व, तन्हाई, सफलता-असफलता, सच-झूठ, विश्वास-अविश्वास जैसे दुनियादारी की बातें अधिक दिखाई देती हैं।लेकिन उनकी सम्वेदना समाज के उपेक्षित वर्गों की तरफ जाती ही नहीं, ऐसा नहीं कहा जा सकता।
“कोई तो पूछे ज़रा हाल उन अंधेरों से
कि जिनके पहलू में सूरज कभी उगा ही नहीं”
विनोद जी के यहां किसी भी शायर की तरह उर्दू शायरी की परंपरा से प्राप्त प्रतीकों, उपमानों का काफी प्रयोग हुआ है। शराब, साकी, हुस्न, इश्क,दिल, आईना, समंदर आदि पर्याप्त मात्रा में हैं। उनकी शायरी की ज़मीन लगभग इसी के इर्द-गिर्द है।फिर भी वे अपनी बात अपने ढंग से कह पाने में सफल रहे हैं। कुछ उदाहरण-
“अब यहां कोई ख़रीदार नहीं ख्वाबों का
मैंने बाजार में कल अपनी हकीकत बेची”
“नए ज़माने की बारिश में बह गया होगा
ज़रा-सी बात पे वो रिश्ता ढह गया होगा”
“कोई तो सुन ले यहां जनता की भी कुछ
हर किसी को वरगलाया जा रहा है”
“कुछ करो, अब तो सड़क पर उतरो
हुक्मरानों को नसीहत तो मिले”
“टुकड़ो-टुकड़ो में बँट जाएगी ये ज़मी
हर कोई अपने घर मे सिमट जाएगा”
इस तरह जीवन के राग-रंग, विडम्बनाएं, नए दौर के बदलाव, रिश्तों की गर्माहट में आ रही कमी के पर्याप्त शेर हैं। अलावा इनके हुस्नो-इश्क, सौंदर्य, प्रेम की शिकवा-शिकायतें भी काफी मात्रा में हैं, मगर इनमे परम्परा निर्वहन अधिक दिखाई देता है।नज़्मों के बारे में भी लगभग यही बातें कही जा सकती हैं।यों विनोद जी भी अपनी शायरी में ‘अपने ज़ज़्बात’ के प्रस्तुतिकरण पर अधिक बल देते हैं।
भाषा के मामले में विनोद जी शायरी आम बोलचाल की जुबान के करीब है, जिससे आम पाठक को शायरी के मर्म तक पहुंचने में कठिनाई नहीं होती। ‘दो शब्द ‘में वे इस बात को स्वीकार भी करते हैं। इस तरह इस संग्रह में में पाठक जहां शायरी के क्लासिकीय परंपरा से संपृक्त शेर पाएंगे वहीं अपने समय और समाज के द्वंद्व को भी महसूस करेंगे और देखेंगे की शायर के ज़ज़्बात बहुत हद तक उनके अपने ज़ज़्बात भी हैं।
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कृति- मेरी ज़मीन मेरा सफर
लेखक-विनोद कुमार त्रिपाठी ‘बशर’
प्रकाशन- राधाकृष्ण, नई दिल्ली
मूल्य- ₹ 395
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[2020]
●अजय चन्द्रवंशी, कवर्धा(छ. ग.)
मो. 9893728320