जीवन का विवेक ही साहित्य का विवेक है
मुक्तिबोध पुण्य तिथि पर आलोचक विनोद तिवारी
मुक्तिबोध परिवार और साहित्य अकादमी छत्तीसगढ़ संस्कृति परिषद के व्याख्यान समारोह में आलोचक विनोद तिवारी ने कहा कि मुक्तिबोध एक पेंसिल की तरह हैं जो संघर्ष के बाद अपनी शार्पनेस प्राप्त करता है। मुक्तिबोध कहते थे कि जीवन का विवेक ही साहित्य का विवेक है।
आलोचक श्री तिवारी ने कहा कि उनके साहित्य में आलोचना केंद्रीय स्थिति में है। वे आलोचना की मार्क्सवादी सिद्धांत के हिंदी में उत्कृष्ट लेखक थे। मुक्तिबोध ने कामायनी में उपस्थित जीवन समस्या को पैनी दृष्टि से देखा। वे कहते थे कि कला के शिल्प और आत्मा में अंतर करना होगा। श्री तिवारी ने कहा कि मुक्तिबोध की किताब एक साहित्यिक डायरी एक कालजयी किताब है। सृजन प्रक्रिया पर बेबाकी से बात रखी गई है।
अध्यक्षता आलोचक जयप्रकाश ने की। प्रारंभ में साहित्य अकादमी के अध्यक्ष ईश्वर दोस्त ने व्याख्यान के उद्देश्यों और मुक्तिबोध के अवदान पर चर्चा की। वसु गंधर्व और अजुल्का सक्सेना ने मुक्तिबोध की एक कविता का स्वरबद्ध गायन किया।