बापू के प्रति
आपत्तिअन्यायसंघर्ष में भी
रहे देव अपनी अलख तुम जगाए |
प्रात: किरण-से उगेतुमजगत में
(मुकुलित कमल-सा हुआ मुग्धनत मैं )
रंजित हुआ विश्व – आलोक आया
भँवर – ग्रस्त नैयाने मल्लाह पाया ||
प्रगति को प्रभा का दिया छन्द तुमने
मुझे निज विभा में किया बन्द तुमने |
समय ताल देता तुम्हारी प्रगति पर
तुम्हें देख बहते सरल स्नेह निर्झर ||
तुम्हीं ने मरुस्थल में नन्दन बसाए
धरा की तपन पर करुणा मेघ छाए |
तुम्हेंरोक पाईं न काली घटायेँ
तुम्हेंटोक पाईं न नन्दन छटायेँ ||
नई आग ले तुम चले आ रहे हो
नई राग बन विश्व में छा रहे हो |
जहाँ तुमचले पंथ अपना बनाया
जहाँ तुम जले, तम स्वयं तिलमिलाया ||
वहीं सृष्टि फूली, नई ले कहानी
वहीं दानवों को मिली नम्र वाणी |
उतरना वहीं स्वर्ग को भी सुहाया
वहीं तार सुषमा का फिर झनझनाया ||
अंकुर वहीं पर नएफूट आए
वहीं ‘फूट’ ने फिर मिलन गीत गाए |
बसी राजधानी वहीं पर प्रणय की
तरल हो बही क्रूर जड़ता हृदय की ||
वहींहो गई शक्तिस्नेहाभिरंजित
वहीं हो गई भक्ति श्रध्दा निमज्जित |
आसक्ति बेली खिली ले समर्पण
वहीं झरेंगे आत्म विकृति के कण ||
वहीं बुध्द का बोध जागा सजग हो
वहीं ज्ञान शतदल खिले मुस्कराए |
लगीआग विव्देश पशुता की भारी
जलीजा रही बंग कविता हमारी ||
फुँका जा रहा पंचनद प्रान्त प्यारा
भूना जा रहा हाय! भारत हमारा |
लिखी जा रही रक्त से है कहानी
चरण चिन्ह रक्तिम बने युग निशानी ||
ये नीलाभ अम्बर, ये हरिताभ धरणी
हें हिमगिरि,ये सागर,पवन पुष्पकर्णी|
तुम्हारे पुजारी; इन्हें मुक्ति दो तुम
विनय में खड़े हैं ये आँखें बिछाएँ||
आपत्तिअन्यायसंघर्ष में भी
रहे देव अपनी अलख तुम जगाए |
कवि इन्द्र बहादुर खरे
“जय हिन्द”में प्रकाशित २ अक्टूबर १९४७