गिरधारी पटेल की एक कविता
आईना
एक चिड़िया ,
रोज आईने के सामने ,,
अपने हमशक्ल को देखकर,,
घायल कर देती है ,
चोंच मार-मार कर,,
उसको अपना ,
दुश्मन समझ कर ,,
जिसने बनाई आशियाना,
तिनका तिनका चुनकर.,
अपने बच्चों को पालती,
धूप छांव बारिश सहन कर,,
फिर भी ना जाने क्यों,
दुश्मन समझ बैठी वह ,
आईने में हमशक्ल को देखकर,,
न जाने कितनी बुराइयां है,
लड़ रही थी बार-बार,
अपने हमशक्ल देखकर,
क्योंकि उसने अब तक,
ना देखी थी बुराइयां ,
खुद के अंदर झांककर,,
इसलिए वह सोच रही थी ,
क्यों नहीं बन जाती तू ,
मेरी तरह करके श्रृंगार,,
यही तो सोचता है हर कोई ,
जब तक खुद को न देख ले,
आईने में मन को अपना ,
बार-बार ,दर्पण बनाकर,,
सोचते हैं हम अक्सर ,,
खुद को सबसे बेहतर ,,
जब तक ना पड़े ,
अपने आईने पर नजर, ,
सर्वाधिकार सुरक्षित @
गिरधारी पटेल ,ग्राम-हरदी ,
जिला-महासमुंद ,
छत्तीसगढ़ 493551 ,
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