मैसूर से डॉ रामनिवास साहू की दो कविताएं
सोनहा बिहान
पा लगी कर
पालिस जहर तोला
बिन स्वारथ,
धरती माता
चांटी औ हाथी सबो
ला पालत हे,
मानव पर
जादा मोहित होके
दुखि यारी हो,
पुकारत हे
दुख झन लावा रे!
सियान बना,
कांटा बढ़त
देख के मुर्केट दे
उठा कुदारी,
उठही ओ हा
साबर बन आघु
रोकही रद्दा,
देस के चाल
देसी जन चलाही
तैं नोहस का?
तोर चलन
दुसर के अगाड़ी
बेच के आत्मा,
बोहत धारा
बोतल के दारू मा
काबर जाथा?
कोरुना दीप
जल जल कहता
कोई दिखे न,
छिपे रहो रे,,,,,,
पुलिसिया दंडक
ठोकता चले,
दिनभर वे
अंधेरा कायम हो,,,,,,
पुकारते हैं,
जो डर गया
वह बच निकला
आज की बात,
शेर वह रे,,,,,,,
जो चूहा बनकर
बिल में छिपे,
सूनी सी गली
डर डर पुकारी
कोई तो चलो,,,,,,,,
सभी दुबके
बरतन धो रहे
बीबी ने कहा,
श्रीमती मस्त
तेरे बिन बालम,,,,,,,,,
गाना गा रही,
पकोड़े तलूं
मौसम सुहाना है
पति ने कहा,,,,,,
ओ हंस पड़ी
अब आया है उंट
नीचे नीचे रे,,,,,,,,,।
शुभ उदय।
डॉ रामनिवास साहू