निमिषा सिंघल की लोकप्रिय कविताएं
बूंद
बूंद हूं मैं एक खारी,
छलकी..
हो चक्षु से भारी,
बहकी बन सुख- दुख की मारी,
बूंद हूं मैं एक खारी..।
मन, हृदय सब गम से भारी…
कर गया आंखों को हारी,
बोझ सारा मैं समेटे,
चल पड़ी..
हो मैं दीवानी।
बूंद हूं मैं एक खारी…।
सुख अधिक छलका दे मुझको…
दुख अधिक कर देता भारी,
प्रेम में भरती हृदय को,
संताप में कर देती खाली।
बूंद हूं मैं एक खारी..
2️⃣ कविताएं
अकेले …
रहने नहीं देती ,
साथ चलती हैं।
निशब्द संवेदनाओं की अभिव्यक्ति का
संवाद बनती हैं।
कलम में ताकत भर, स्मृतियों की आवाज बनती है।
अंतर्मन के शोर को..
बाहर लाने के लिए एकांत बनती है।
बिना अभिव्यक्त करें खुद को…
कवि मारा जा सकता है,
उसे बचाने के लिए…
नित नया आसमान रचती हैं।
कवि की सोच को विस्तार दें,
शब्दों में पंख लगा..
उड़ान बनती है।
युद्ध और शांति के बिगुल की आवाजें लेखनी में भर
मुखर आवाज़ बनती हैं।
प्रकृति के आंसुओं का हिसाब-किताब कर
किताब बनती हैं।
अंतर्मन के ..
घाव़ो को भर
सम्मान बनती हैं।
दो बिछड़े प्रेमियों के बीच सामंजस्य बिठा
पुल का निर्माण करती हैं।
कविताएं…
बेहद जरूरी है एक कवि को बचाने के लिए।
3️⃣ अपेक्षा/उपेक्षा
अपेक्षाएं पांव फैलाती हैं…
जमाती हैं अधिकार,
दुखों की जननी का हैं एक अनोखा…. संसार।
जब नहीं प्राप्त कर पाती सम्मान,
बढ़ जाता है क्रोध…
आरम्पार,
दुख कहकर नहीं आता..
बस आ जाता है पांव पसार।
उलझी हुई रस्सी सी अपेक्षाएं खुद में उलझ..
सिरा गुमा देती हैं।
भरी नहीं इच्छाओं की गगरी….
तो मुंह को आने लगता है दम।
भरने लगी गगरी…
उपेक्षाओं के पत्थरों से,
जल्दी ही भर भी गईं..
पर रिक्तता बाकी रही…।
मन का भी हाल कुछ ऐसा ही है
स्नेह की नम मिट्टी.. पूर्णता बनाए रखती हैं,
उपेक्षाएं रिक्त स्थान छोड़ जाती हैं।
🖊️ निमिषा सिंघल