बस इतना ही है बस्तर ••
घोटूल , चापड़ा चींटी , चित्रकोट जलप्रपात, कुटुमसर गुफा , सल्फी , लांदा , चार , तेंदू , महुआ , इंद्रावती , शंखिनी – डंकिनी , काष्ठ शिल्प , ढोकरा शिल्प , आदिवासी नृत्य , बैगा , गुनिया , झाड़- फूँक और न जाने क्या कुछ ••
बस इतना ही है बस्तर
उनके लिए
जो आते हैं यहाँ नगरों, महानगरों से
समय समय पर फेरी लगाने
वे गढ़ते हैं रोज नये कथानक
लौटने के बाद
यहाँ के जनजीवन और आदिम समाज को लेकर
उनकी परिभाषाओं से
मिलती हैं उन्हें कई कई उपाधियाँ
बुलाया जाता है उन्हें
उनकी नई शोध पर व्याख्यान देने
सभा गोष्ठियों में
वे जो यहाँ पैदा हुए
उनके लिए अब भी अबूझ है बस्तर
कहते हैं वे बहुत थोड़ा जानते हैं
हाँलाकि बहुत ज्यादा जानने से अनिभिज्ञ
वे यहाँ जीना पसंद करते हैं
जिनके लिए सब कुछ है बस्तर
उनकी नींद आधी रात को कैसे टूट जाती है ?
नमक और शक्कर के स्वाद में
कैसे घुल जाता है कसैलापन ?
रात के सन्नाटे में टपकते
महुए में खून के टपकने की आहट
उनके सपनों में सेंध लगाती है
तब छटपटाते बड़बड़ाते बिसूरते रहते वे
उनके बारे में वे क्या जानें
जिनके लिए
बस इतना ही है बस्तर
जिसे उन्होंने आँखें फाड़कर फाड़कर देखा
करवट – करवट जब तब कराहता है बस्तर
तब उनकी आँखें
जाने क्यों सिकुड़ जाती हैं ?
सतीश कुमार सिंह