देश की मशहूर चित्रकार पारूल तोमर की एक ताजी कविता
बैसाख की गर्म रातों में
आसमान के चँदोवा नीचे
पंखा झलती, कहानी सुनाती
नानी अक्सर सो जातीं
छूट जाता कहानी का सिरा
बच्चे नानी को गुदगुदाते, जगाते
कहानी का सिरा, फिर से पकड़ाते
नीलाकाश में कंदील सा टंगा
पीला चाँद मुस्काता
सितारें जुगनुओं से टिमटिमाते
भेड़िये की कहानी सुनाती नानी
भर देती हैं साहस और निडरता
‘नन्हीं लाल चुन्नी’ के जैसे ही
कहानी सुनते, बढ़े होते बच्चों में
क्योंकि बड़ी – बड़ी आँखों वाला भेड़िया
आज भी घुस आता है चुपके से घरों में
नित नये वेश बदल, बच्चों को छलने
बुराइयों से बचना सिखा जाती नानी
यूँ ही किस्सा सुनाती, बातों- बातों में
शेखचिल्ली का किस्सा सुन
खील – बताशों से ठठ्ठाकर खिलखिलाते
बच्चे सीख जाते छोटी – छोटी बातों में
बड़ी – बड़ी खुशियों को जीना
पलकों में पलते सतंरगी सपने
जीवन में भी फलने लगते
अगाध ज्ञान से दीप्त
झुर्रियों वाले चेहरे पर बढ़ जाती
सुख और शाँति की लकीरें
आज ईंट-सीमेंट
लोहे की दीवारों से बने
मकानों वाले शहरों में बच्चे रीते हैं
कल्पना और कला की
किस्से-कहानियों वाली विरासत से
लोरी – थपकी और लाड़ – दुलार से
क्योंकि दादी – नानी तो कबकी
छूट गयीं हैं शहर से बहुत दूर
कच्चे घरों वाले अपने पुश्तैनी गाँव में।
नानी जी की स्मृति में….
© पारुल तोमर
17 04 2021