November 23, 2024

कोरोना : मौत से जंग, जिंदगी की चाह

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…..यह एक पंक्ति मुझे हमेशा ही प्रेरित करती आई है । आज एक अरसे बाद कलम उठाई है तो सोचती हूं कि इसे आज तलवार की तरह चला ही दूँ … तो मेरा पहला सवाल है, कि क्या हमें दिखाई और सुनाई देना बिल्कुल बंद हो गया है ? शुरुआत में शायद यह प्रश्न आपको बेतुका लगे पर इस पूरे लेख को पढ़ने के बाद मुझे जवाब जरूर दीजिएगा।

आज मैंने अपनी नौवीं कक्षा में साथ पढ़ी दोस्त रीना (परिवर्तित नाम … वैसे भी शेक्सपियर ने कहा है कि नाम में क्या रखा है, तो आप नाम की बजाय मुद्दे पर ध्यान दें । ) को फोन मिलाया । रीना नागपुर के एक अस्पताल में कोरोना पीड़ितों की सेवा एक नर्स के तौर पर पिछले 1 साल से कर रही है । मैं बीच-बीच में उससे बात करती रहती हूं ।आज उसने फोन में जो पहली पंक्ति मुझे बोली उसने मेरे ह्रदय को चीर कर रख दिया । मैंने उसका हालचाल पूछा तो वह बोली, ” यार आज अच्छा नहीं लग रहा। रोज अपनी आंखों के सामने , अपने हाथों में लोगों को मरता देख रही हूं । अब तो मेरी भावनाएं भी जवाब दे रही हैं ।” वह आगे बोलती रही और मैं सुनती रही । ” जी तोड़ कोशिशों के बाद भी हम किसी को बचा नहीं पा रहे और मौत भी कैसी कि देखने वाला खुद सौ मौतें मर जाए । मरीज की एक-एक सांस के लिए चलती जद्दोजहद, बिस्तर पर रगड़ती उसकी एड़ियां और हम बस यह सब देखते हैं और सोचते रह जाते हैं कि क्या किया जाए ? कितने तो ऐसे की ओपीडी तक तो पहुंचते हैं पर इलाज की नौबत ही नहीं आती, किसी लावारिस की तरह यह सब बस अंतिम समय अकेले ही रह जाते हैं । ऐसे में इंफेक्शन लगने के डर के बीच भी मैं ऐसे किसी असहाय मरीज का हाथ पकड़ने से खुद को रोक नहीं पाती । लोग क्यों नहीं समझते कि यह खतरनाक बीमारी है ?”

उसके इस प्रश्न में तथ्य था । क्या आप जानते हैं इस रीना का भी अपना परिवार है दो प्यारे बच्चे हैं जिन्होंने लगभग साल भर से मां को कसकर गले से नहीं लगाया ।

तो मुद्दा यह है कि क्या हम इन चित्कारों को, एंबुलेंस की आवाजों को सुन नहीं सकते ?, क्या हमें सुनामी की तरह बढ़ते आंकड़े दिखाई नहीं देते ? या फिर सोचने, समझने, निर्णय लेने, संयम रखने की चेतना खत्म हो चुकी है …या बात यह है कि इन डॉक्टरों और नर्सों को तो छोड़ दें अब हमें अपनी और अपने परिवारों की भी चिंता नहीं है ।कोरोना का जिक्र आते ही हम किसी रट्टू तोते की भांति बोलना शुरू कर देते हैं …व्यवस्था जिम्मेदार है, सरकार जिम्मेदार है, अस्पताल प्रबंधन जिम्मेदार हैं । बस एक के सिर की गगरी दूसरे के सिर पर फोड़ने में व्यस्त हैं । क्या आप यह “ब्लेम गेम” खेलना चाहते हैं और याद रखिए अगर इस खेल का हिस्सा बनना है तो जंगल में फैली आग की तरह जलते शमशानो में हम सब भस्म हो जाएंगे ।

क्या हमें दिखाई नहीं देता कि एक चिता पर आठ आठ लोगों को जलाया जा रहा है, लकड़ी के अभाव में अधजली चिताओं को कुत्ते खा रहे हैं … भयानक है यह सब और आपको भी अगर ऐसा लगता है तो रास्तों पर आज भी भीड़ क्यों है ? क्यों हम सब्जी और राशन की मंडियों में चीटियों की तरह घूम रहे हैं ? क्यों अभी भी दावते उड़ाई जा रही हैं ? क्यों मॉर्निंग वॉक और एक्सरसाइज के नाम पर बगीचों में भीड़ लगाई जा रही है ?क्यों मास्क लगाना शान के खिलाफ समझ आ जाता है ? क्यों 2 गज की दूरी से परहेज है ? क्यों इतने बेफिक्रे बयान आ रहे हैं ,”कि अरे !करोना वोरोना कुछ नहीं है ” तो अगर आपको भी ऐसा लग रहा है कि कोरोना जैसी कोई बीमारी नहीं है तो भाई साहब एक नजर इन अस्पतालों और श्मशान में जरूर दौड़ाइए | ऐसा तांडव चल रहा है कि इसकी भयावहता आपको भी निश्चित डरा देगी ।

मैं जानती हूं कि यह केवल मेरे विचार है कई लोगों को यह विचार पसंद नहीं आएंगे क्योंकि अक्सर मुझसे लोग कहते हैं कि इतना डरना नहीं चाहिए ..अरे भाई बिल्कुल मत डरिए …पर एक चीज समझ लीजिए निडरता का अर्थ मूर्खता नहीं होता । ठीक उसी तरह , जिस तरह हम रेलगाड़ी से डरते नहीं है पर इसका मतलब यह तो नहीं कि हम किसी रेलवे ट्रैक के बीचो बीच जाकर खड़े हो जाएं और सब को कहें कि मैं ट्रेन की टक्कर से नहीं डरता … अब आप इसे निडरता कहेंगे या आत्महत्या ।

सरकार हम पर पाबंदी लगाए इसका हम सब को इंतजार है … कितना हास्यास्पद है यह, जब आपकी जान की चिंता आपको ही नहीं है तो दूसरों से अपेक्षाएं कैसे रख सकते हैं ? यह लड़ाई मेरी, मेरे परिवार की, मेरे घर की है, यह सोच लाइए अपना लॉकडाउन खुद लगाइए |

मैं समझती हूं … हममें से कुछ ऐसे भी हैं जिन्हें रोजी रोटी कमाने के लिए, दूसरों की मदद करने के लिए घरों से बाहर निकलना पड़ रहा है, पर एहतियात और सावधानी हर जगह रखी जानी चाहिए और अगर जरूरत ना हो तो घर से बाहर ना निकले | याद रखिए आज ऑक्सीजन की कमी ,बेड की कमी, इंजेक्शन की कमी है… जिसे आज नहीं तो कल मशीनों के द्वारा फिर से बनाया जा सकता है पर जरा सोचिए रीना जैसे सेवाभावी और काबिल नर्सेज और डॉक्टर्स अगर चरमरा गए तो इन्हें किसी भी फैक्ट्री या मशीन से बनाया नहीं जा सकता ..आने वाले दिनों में अगर ऐसा हुआ तो यह शमशान जो हमें दूर से जलते नजर आ रहे हैं हमारे घरों के आंगन तक आ जाएंगे तो भगवान के लिए चेत जाइए नहीं तो चिता जलते देर नहीं लगेगी ।
© माधवी निबंधे
लेखक और पूर्व पत्रकार दैनिक भास्कर भिलाई दुर्ग

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