अनिला राखेचा की एक कविता
पंचांग
कुछ चीजें हकीकत में जितनी सुंदर होती है
उतनी तस्वीरों में नहीं लगती
जैसे आसमाँ पे उँकेरा गया सोलह कलाओं का शशांक
निखर कर उभर आता है उसका सौंदर्य
देखने वाली निगाहों में
इस वक्त जैसे उजागर हो आया है
कोसो दूर रहने के बावजूद भी
अपनी उम्र की ऊँचाई के नीलाभ पर टँगा
ये हमारे प्रेम का शशिकांत
यहाँ हर तिथि का एक ही नाम है
तुम.. तुम… तुम…. और बस तुम…..
– अनिला राखेचा