November 21, 2024

पुस्तक समीक्षा – वे लोग

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पुस्तक समीक्षा – द्वारा अतुल्य खरे

पुस्तक- वे लोग

लेखिका – सुमति सक्सेना लाल

प्रकाशक – वाणी प्रकाशन

सुरुचिपूर्ण स्वस्थ हिंदी साहित्यिक रचनाकारों में अत्यंत वरिष्ट लेखिका सुमति सक्सेना लाल का नाम बहुत ही आदर एवं विशेष उल्लेख के साथ लिया जाता है, जिन्होनें एक लम्बे विराम के बाद पुनः वापसी करी और अपनी दूसरी पारी में साहित्य को कई अनमोल संग्रहणीय रचनाएँ दे कर कृतार्थ किया . यूँ तो उनके कहानी संग्रह “अलग अलग दीवारें” ,” दूसरी शुरुआत” ,” होने से न होने तक” और “फिर … और फिर” भी काफी सराहे गए एवं पाठको से भरपूर प्यार बटोर कर अपनी अमित छाप भी छोड़ गए वहीँ “ वे लोग “ लेखिका द्वारा रचित नवीनतम कृति है एवं ग्राम्य जीवन की पृष्ट भूमि में रचित इस कथानक के ज़रिए लेखिका ने हमें ग्रामीण जीवन की वह झलक दिखला दी जो आज के शहरी जीवन और तेज़ी से आगे निकलने की उत्कट इक्षाएँ हम से छीन चुकी है या कहें कि हम उस सुख को स्वयं खो चुके है और कल के लिए अपने आज को तिलांजलि दे चुके हैं । आज कल गावों को निगलते शहर , किसानों की जमीनें निवेश के उद्देश्य से कम कीमत में खरीदकर किसान को भविष्य का मज़दूर बनाती व्यवस्था , पारिवारिक रिश्ते , कुछ मज़बूत तो कुछ कमज़ोर कड़ियाँ ,एवं नारी शिक्षा जैसे विभिन्न विषयों के इर्द गिर्द सारे कथानक का तानाबाना बुना गया है . सामान्य भाषा शैली है जो कि आम जन पढ़े , गुने और बिना किसी अतिरिक्त प्रयास के ही समझ सके । कथानक में भाव स्पष्टीकरण एवं कथ्य की अंतरात्मा तक पहुचने हेतु कही कही सुंदर वाक्यांशों का भी प्रयोग देखने में आता है जैसे कि “सहमी सी खुशी और डरी सहमी सी शिरकत”।

कभी व्यक्तिगत लाभ ,कभी किसी एक का निहित स्वार्थ तो कभी ग्राम्य परिवेश की बाध्यताएं अथवा कहें रूढ़िवादी मान्यताएं इंसान को अथवा सम्पूर्ण समाज को ही इतना विवश कर देते है कि वह मानसिक रूप से कर्म से सहमत न होते हुए भी एवं यह भलीभांति जानते समझते हुए की कृत्य उचित नही है कुछ भी करने हेतु स्वयं को विवश पाता है जिससे पाठक को रूबरू कराने हेतु ,सरल सहज ग्रामीण परिवेश में जीवन के विभिन्न रंगों को दिखाते हुए अनेकों छोटी बड़ी ऐसी घटनाओं को शब्दों के मार्फ़त पाठक के समक्ष प्रस्तुत किया है जो कथानक को अत्यंत रुचिकर रखते हुए पाठक को पात्र से भावनात्मक रूप से भी जोड़ देती है एवं पुस्तक कि यही विशेषता उसे पुनः पठनीय एवं संग्रहणीय बनाती है . सम्पूर्ण कथानक में यदि किसी चरित्र नें सर्वाधिक प्रभावित किया है तो वह निश्चय ही अम्मा का किरदार है जिसका सारा जीवन अपने बेटे बेटी के लिए त्याग और समर्पण का ही रहा और जो अपने बच्चों को शिक्षित करने हेतु कैसे त्याग करती है किन्तु जीवन काल की संध्या में जब दोनों ही बच्चे स्थापित हो चुके है समृद्ध है तब वह शायद कहीं बहुत पीछे छूट चुकी होती है , और तब शायद वह उस सच को स्वीकार कर लेती है जो वह जिंदगी भर नकारती रही . शहरी ससुराल के सदस्यों के द्वारा एक आदर्श रिश्तेदार का चरित्र प्रस्तुत किया गया है ।

दरअसल सारा मसला ही लड़की को बोझ मानने से शुरू होता है और यह विशेष तौर पर उल्लेखनीय है कि स्त्री ही स्त्री की प्रथम दुश्मन है फिर रिश्ते को नाम चाहे जो भी दिया गया हो । दृश्य जीवंत हैं समय कि चुनौतियों के साथ साथ जीवन का विभिन्न स्तरों पर अंतर्द्वंद एवं परिस्थतियों का चित्रण पूर्ण एकनिष्ठा से किया गया है .

लड़की को ब्याह कर उस से कैसे मुक्ति पा ली जाए सोच मात्र यहीं तक है वर पात्र है या कुपात्र , कन्या के योग्य है भी या नही ये सभी बातें गौढ़ है ।एक बेटी की मौत पर अफसोस करने से ज्यादा दूसरी बेटी को विधुर के साथ कैसे व्याह दिया जावे इस पर प्रयास एवं विचार अधिक केंद्रित है । बच्ची को अल्प आयु में विवाह कर दें , वह बचपन में ही मां बन जावे उसमें किसी को भी कोई दोष नज़र नही आता ।

जब लेखिका लिखती है कि सद्य विधुर के लिए रिश्ता लेकर लोग तो शमशान जाने से भी गुरेज नही करते तब हमें इस बात की गंभीरता का एहसास होता है । नारी शिक्षा की सोच एवं अनिवार्यता को बहुत ही सुंदर तरीके से कथानक में पिरोया गया है । दामपत्य जीवन में आपसी समझ, आदर एवं परस्पर सहयोग को भी बड़े ही सुंदर तरीके से दर्शाया गया है । शादी के पहले पितृ गृह में बंधु बांधवों से संबंध एवं शादी के पश्चात उन्हें कैसे मर्यादित तरीके से निबाहा जाए इस के भी उध्दरण मिलते है। सम्पूर्ण रचना मात्र एक परिवार के इर्द गिर्द होने के बावजूद कथानक को बोझिलता एवं नीरसता में डूबने से बखूबी बचा लिया है । कुछ पात्र उनकी स्थिति एवं परिवेश के मुताबिक प्रादेशिक बोली का प्रयोग करते है जो दृश्य की मांग के अनुसार उपयुक्त ही है । इतने विस्तृत कथानक होने के पश्चात भी पात्र सीमित ही है एवं अपनी भूमिकाओं में सीमित रहते हुए कहीं भी अन्य पात्र के क्षेत्र में अनावश्यक दखल करते प्रतीत नहीं होते ।

एक साफ़ सुथरी ,सरल ,सहज, पारिवारिक कहानी है जिसमें कई जगहों पर वह अपनी ही लगने लगे या तो कभी उसमें कोई परिचित सा दिखे , बस ऐसी ही है “वे लोग” जैसी मुझे लगी शेष पाठक स्वयं पढ़ें और निर्णय लें, पर हाँ पढ़ें ज़रूर

सादर,

अतुल्य

9131948450

उज्जैन मध्य प्रदेश

17.03.2023

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