कविता : गंतव्य
क्या तुम सुनते हो
सूर्य के भीतर जल रही
हायड्रोजन की आवाज़,
जब तुम सूर्य को
अर्घ्य दे रहे होते हो ?
जब तुम अपने भीतर
अपने अंतर्मन की यात्रा पर होते हो, तब
क्या तुम जान पाते हो–
हमारी पृथ्वी और हमारा सूर्य
अंतरिक्ष में
एक नितांत
अनजानी यात्रा पर है ?
जब तुम प्रार्थना में
लीन होओगे, तब
क्या तुम सुन सकोगे
उस आवाज़ को
जब दो आकाशगंगाएं
टकराएंगी एक दूसरे से ?
इस पृथ्वी पर अपने होने के लिए
जब तुम ईश्वर के प्रति
कृतज्ञता ज्ञापित कर रहे होते हो, तब
क्या तुम सुन सकते हो
उस महाविस्फोट की गूँज
जब ब्रह्माण्ड ने
पहला आकार लिया था ?
कोई संदेह नहीं कि
देवी-देवता और ईश्वर
तुम्हारे अंतर्मन में कहीं वास करते हैं,
अतः लाज़मी है कि
तुम अपने भीतर की यात्राओं में रहो–
लेकिन, क्या तुम जानते हो
तुम्हारे भीतर
वही सब कुछ है,
जो तुमने बाहर अनुभव किया है ?
अतः अपने भीतर की यात्राओं में ही
मत खोए रहो।
बाहर की यात्राएं ही
तुम्हें पहुंचाएंगी
गंतव्य तक !
● नीरज मनजीत
मई, 2022