एक जीते कवि की काव्य परम्परा का बयान…
आज आनंद बक्षी का जन्मदिन है । मेरे कवि मित्र नासिर अहमद सिकंदर ने जितना केदारनाथ अग्रवाल और अन्य कवियों पर लिखा है उतना ही प्रेम धवन जैसे फिल्मी गीतकारों पर भी लिखा है । आज आनंद बक्षी पर लिखी उनकी यह कविता पढ़िये और कमेन्ट बॉक्स मे लिखिए आपको आनंद बक्षी का लिखा कौनसा गीत पसंद है ?
||एक जीते कवि की काव्य परम्परा का बयान||
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आज दो दिन बाद धूप निकली थी
सो सुबह से जीते कवि ने प्रण कर लिया
अकेले चलें ग़ालिब चचा की गलियों में
शाइर मजाज़ मामूँ की सड़कों में
पहुंचा तो आनंद बक्शी जी मिल गए
मेरी तरह सिगरेट
माचिस की तीली से सुलगाते
चिंगारी कोई भड़के — गुनगुनाते
मैं शीश नवाकर मिला
मैं शायर बदनाम —- गुनगुनाकर मिला
मैंने कहा मैं आपका पाठक श्रोता
उन्होंने उसी गली में ग़ालिब – मजाज़ की
खड़े होकर खुमारी में कहा
इस गली के
उस कोने में साहिर साहब
अपनी ग़ज़ल
इस मय को मुबारक चीज़ समझ —सुना रहे हैं
बक्शी साहब से बात करते
आधे घण्टे हुए होंगे बमुश्किल
अचानक मौसम बदल गया
सो एक पेड़ के नीचे
हम खड़े हो गए मौन
मैने चुप्पी तोड़ी तो
वे ही गुनगुनाने लगे
और कभी रिमझिम घटाएं पीछा करतीं हैं—-।
कविता : नासिर अहमद सिकंदर
प्रस्तुति : शरद कोकास