सुशील साहिल की कविता
सब के कहने से इरादा नहीं बदला जाता
हमसे दरवेश का कुन्बा नहीं बदला जाता
तुमने जो चीज़ जहाँ रक्खी थी अब भी है वहीं
मुझसे खिड़की का भी पर्दा नहीं बदला जाता
भीड़ बढ़ जाए तो छत पर ही बिछा लो चादर
बूढ़े माँ-बाप का कमरा नहीं बदला जाता
काम कुछ, सिर्फ़ जवानी में भले लगते हैं
आख़िरी-उम्र में पेशा नहीं बदला जाता
शेर के वज़्न पे अल्फ़ाज़ बदल जाते हैं
अपनी मरज़ी से तो नुक़्ता नहीं बदला जाता
दूर तक साथ सफर करने का अपना है मज़ा
हर क़दम प्यार में रस्ता नहीं बदला जाता
आज जनता के ही हाथों में है सब कुछ “साहिल”
कौन कहता है कि राजा नहीं बदला जाता
@सुशील साहिल