ओ आदिपुरुष!
आज मेरा जन्मदिन है
आज ही मनायेंगे जन्मोत्सव जंगल में
फूलों से सजेगी आपकी वनबाला
ताजा फूल पत्तियों से
सजायेंगे जंगल को
पेड के नीचे थानक है मेरी वनदेवी का
धूप दीप अगर से पूजेंगे
उसके आशीष से महकेगा जीवन
जुगनुओं की टिमटिमाती रोशनी में
जगमगायेगा जंगल
पपीहा, कोयल गायेंगे
मोर थिरकेगा
वनबालाएं नृत्य करेगी
मैं स्वयं लाऊंगी
सबरी की तरह चख कर
तुम्हारे लिए कंदमूल
तुम देखना मेरे स्पर्श से
और भी मीठे हो जायेंगे
जंगल में केवल हम तुम ही नहीं होंगे
आदिपुरुष
वहां होंगे मेरे अपने
जिनके लिए लायेंगे एक हरिण
जिसे वहीं भूनकर खायेंगे।
ताडी और महुए का रस कंठ भिगोयेगा
रात रंगीन होगी
समीप बहता झरना मस्त होकर बहेगा
हम तुम मस्त हो गायेंगे,नाचेंगे
तुम आना आदिपुरुष
हम मनायेंगे जन्मोत्सव
तुम आना!
-डाॅ.रेखा खराड़ी