औरतें तुम जाकर कहीं…
औरतें तुम जाकर कहीं
मर क्यों नहीं जाती हो
बार बार तुम
कभी चारे की तरह
कभी दूब की तरह
कहीं भी उग क्यों जाती हो
औरतें तुम बड़ी बवाल हो
अजीब सवाल हो
जी का जंजाल हो
तुम किसी भी आग में जलकर
कभी लोहा कभी सोना कैसे बन जाती हो
औरतें तुम आखिर किसकी कर्जदार हो
कैसी राज़दार हो
कब हक़दार हो
क्यों खबरदार हो
तुम हर बार विजेता हो
फिर तुम जीतकर भी हार क्यों जाती हो
औरतें तुम तो स्त्री भी हो
पुरूष का भी स्वरूप भी हो
एक ही कोख से दोनों को जन्म देने वाली
स्वयं की प्रसव वेदना हो
फिर भी तुम दोयम दर्जे की लकीर हो
पर्दे के पीछे खड़ी एक जिन्दा हसरत हो
तुम सबकी गढ़ी हुई तस्वीर हो
फिर भी तुम ही जननी हो
क्यों हालातों को अपनी
तुम तक़दीर मान लेती हो
और फिर भी टूटती दुनिया को
अपनी पीठ पर बाँध लेती हो
झुकती हुई कमर और सूखती छातियों से
ममता का बाँध कैसे बना लेती हो
घने पेड़ों से सूखी टहनियों सी टूटकर
गहरी नदी में खुद को नाव बना लेती हो
औरतें तुम भी न बस कमाल करती हो
सबके लिये हर पल जीती हो
और खुद के लिये रोज रोज मर जाती हो।
#अनामिका_चक्रवर्तीअनु