सुबह के उजालों से …
सुबह के उजालों से आंखें चुराकर
अंधेरी निशा से डरे तो नहीं हो??
चुनौती से लड़ने का उत्साह खोकर
मरने से पहले मरे तो नहीं हो??
अभी तुमको तूफान ने कान में आ
‘मैं तुमसे बड़ा हूं’ डराया है शायद।
निराशा ने चुपके से कुछ बुदबुदाकर,
अंधेरी गली में बुलाया है शायद।
अरे दूर देखो वो आशा खड़ी है।
तूफान अदना सा घायल पड़ा है।
अंधेरा घनेरा डराता रहा जो,
नन्हें से दीपक से हारे खड़ा है।
अभी तो तुम्हारे लिए चांदनी का
भरा एक भण्डार रखा है नभ में।
अभी रात के बाद आएगी सुबह,
उजाले खबर दे रहे देखो सब में।
अभी तो बहारें भी आईं नहीं हैं।
अभी तितलियां मुस्कुराई नहीं हैं।
अभी जुगनुओं की चमक रह गई है।
रुको! वो बसन्ती पवन कह गई है।
ठहरो चमन में खिलेंगी बहारें।
भिगो देंगी तुमको हंसी की फुहारें।
वो ऊषा मघोनी चली आ रही है।
तुम्हें सिद्धि देने को इठला रही है।
“तुम उससे बड़े हो” ये आंखें मिलाकर
तूफां से कह दो, न मैदां से भागो।
अंधेरों से डरकर सुनो क्रांतिवीरों!
सूरज उगाने का साहस न त्यागो।
अभी मेघ जैसा बरसना है तुमको।
अभी सूर्य बनके चमकना है तुमको।
अंधेरों की छाती पे ताण्डव मचाने,
अभी रुद्र जैसा मचलना है तुमको।
ये वनवास मेहमां है बस और कुछ दिन
निराशा की लंका के रावण मरेंगे।
समर जीत कर आओगे जब अयोध्या;
जीवन में खुशियों के दीपक जलेंगे।
सुमेधा…