लघुकथा : पटरी
डोली शाह
फिरंगी लाल की कपड़े की छोटी-मोटी दुकान थी। लेकिन ग्राहकों की हर पसंद वहां मौजूद थी ।उसी दुकान से उन्होंने रोजी-रोटी के साथ गाड़ी, बंगला भी बना लिया। एक दिन अघट घट गया। अचानक उनकी तबीयत बिगड़ी और अधेड़ अवस्था में दुनिया छोड़कर चले गये।
अब उनका बेटा हीरालाल दुकान देखता। दशहरे का त्यौहार आने ही वाला था। हर बार की तरह इस बार भी पूरा गोदाम कपड़ों की गाठो से भरा हुआ था। इसलिए अधिक दिखाने और दाम -दौर से बचने के लिए उसने सारे कपड़ों में दाम स्लिप लगवा दी। कोई आता दाम देखकर पैसे देकर चलता बनता।
दशहरा , दिवाली फिर ईद का त्यौहार भी बीतने ही वाला था। कुछ गाठे तो ज्यों का त्यों ही रह गए। अब कंपनी से पैसे देने के लिए फोन पर फोन आने लगे। हीरा लाल बहुत चिंतित रहने लगा।
एक दिन दुकान जल्दी निपटा कर शाम को अपने दोस्तों के साथ आइसक्रीम खाने रेस्टोरेंट पहुंचा । वहां अपनी दुकान के परिस्थितियों की चर्चा कर ही रहा था कि अन्य एक मित्र कहने लगा। आजकल ऑनलाइन शॉपिंग ने दुकानदारों की कमर तोड़ दी है । आम बाजार की दशा यही है और तुम्हारा वह मूल्य स्लिप लगाना, इतने में सभी हंस
पड़े ।
वहीं किनारे बैठे लोग यूं ही बातें कर रहे थे कि कल महा -अष्टमी का कन्या पूजन है, कुछ खरीदारी आज ही कर लेते तो अच्छा होता। फिरंगी लाल की दुकान पर सब कुछ मिल भी जाएगा।
… हां , मगर आजकल वहां जाने का मन नहीं होता । पहले जैसा आराम नहीं।
यह बात हीरालाल के कानों तक गई। ऐसी क्या कमी रह गई कि लोगों के मन में ऐसे विचार ! तभी हर शाम पिता की मां को चाय नाश्ते की बताई बातें स्मरण हो गई।
…. पर आप क्यों करते हैं ?
….एक कप चाय में क्या जाता है! हमारे चाय और मीठे बोलने से किसी को खुशी मिलती है तो हमें भी उसमें खुश होना चाहिए और हम व्यापारियों को तो वैसे भी मुंह मीठा ही रखना चाहिए । तभी ग्राहकों का दिल जीता जा सकता है।
पिता की बात स्मरण कर उसके अंदर एक अद्भुत ही बदलाव आया।अब दुकान पर जो भी आता,वह बड़े सम्मान से बातें करता । कभी जरूरत पड़ती तो अपने साथ एक दो को चाय भी पिला देता। अब पुनः हीरालाल की दुकान धीरे-धीरे पटरी पर आ गई और पूरा परिवार खुश रहने लगा…..।
डोली शाह
हैलाकादी ,असम