December 3, 2024

शरद पूर्णिमा पर विशेष : शरद पूर्णिमा, महारास एवं गोपी-गीत का महात्म्य

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लेख लम्बा अवश्य है परंतु आवश्यक है पढ़ें अवश्य।

महारास शरद पूर्णिमा के दिन रचा गया था, कहतें हैं की यह रात्रि इतनी बड़ी हो गयी थी जितनी की छ: महीने का समय होता है, कब रात्रि का समापन हुआ पता ही न चला, भगवान् कृष्ण ने शुद्ध सास्वत भक्ति योग की शिक्षा इस प्रेम योग से दी, ईश्वर ज्ञान से बढ़ कर भक्ति से एवं भक्ति से भी बढ़ कर प्रेम के वशीभूत हो कर भक्त जनों के पास पहुँच जाते है | महारास हेतु शरद पूर्णिमा का समय ही क्यूँ चुना गया यह भी वैज्ञानिक एवं अध्यात्मिक कारण है, वर्ष भर में मात्र शरद पूर्णिमा की रात्रि को ही चन्द्रमा अपनी समस्त १६ कलाओं के साथ उदित होता है एवं चन्द्र किरणें इस प्रकार प्रभाषित होती हैं की ये एक विशेष प्रकार की उर्जा प्रदान करती हैं जो अमृत तुल्य हैं इसीलिए आज के दिन खीर चंद्प्रभा में रख कर पीते हैं ताकि खीर में बसी अमृत बुँदे शारीर को मिले, वज्ञानिक दृष्टि से इस १६ कलाओं के चन्द्रमा की रोशनी से सभी प्रकार रे मिलती हैं जो शारीरिक गठन विशेषतः अस्थि के लिए प्रभावकारी होती हैं, इन किरणों में विटामिन इ भी होता है जिससे आँखों को विशेष लाभ मिलता है | ये किरणे आँखों की रेटिना पर सीधा प्रभाव छोडती हैं |
अध्यात्मिक दृष्टि से चन्द्र कला १६ है एवं कृष्ण भी १६ कलाओं को लेकर अवतरित हुए हैं प्रत्येक कला एक संकार की द्योतक हैं सम्पूर्ण कलाओं को एक रात्रि में पा जाना अथार्थ जीवन को मोक्ष के करीब हो जाना ,अतः इस रात्रि में महारास कर भगवन १६ कलाओं द्वारा गोपियों को जो की इन्द्रिय को जीत चुकी हैं उन्हें मोक्ष का द्वार दिखाते हैं |
आईये १६ कलाओं के बारे में विस्तृत जानकारी लेते हैं:
आपने सुना होगा कुमति, सुमति, विक्षित, मूढ़, क्षित, मूर्च्छित, जाग्रत, चैतन्य, अचेत आदि ऐसे शब्दों को जिनका संबंध हमारे मन और मस्तिष्क से होता है, जो व्यक्ति मन और मस्तिष्क से अलग रहकर बोध करने लगता है वहीं 16 कलाओं में गति कर सकता है।

चन्द्रमा की सोलह कला : अमृत, मनदा, पुष्प, पुष्टि, तुष्टि, ध्रुति, शाशनी, चंद्रिका, कांति, ज्योत्सना, श्री, प्रीति, अंगदा, पूर्ण और पूर्णामृत। इसी को प्रतिपदा, दूज, एकादशी, पूर्णिमा आदि भी कहा जाता है।

उक्तरोक्त चंद्रमा के प्रकाश की 16 अवस्थाएं हैं उसी तरह मनुष्य के मन में भी एक प्रकाश है। मन को चंद्रमा के समान ही माना गया है। जिसकी अवस्था घटती और बढ़ती रहती है। चंद्र की इन सोलह अवस्थाओं से 16 कला का चलन हुआ। व्यक्ति का देह को छोड़कर पूर्ण प्रकाश हो जाना ही प्रथम मोक्ष है।

*मनुष्य (मन) की तीन अवस्थाएं : प्रत्येक व्यक्ति को अपनी तीन अवस्थाओं का ही बोध होता है:- जाग्रत, स्वप्न और सुषुप्ति। क्या आप इन तीन अवस्थाओं के अलावा कोई चौथी अवस्था जानते हैं? जगत तीन स्तरों वाला है- 1.एक स्थूल जगत, जिसकी अनुभूति जाग्रत अवस्था में होती है। 2.दूसरा सूक्ष्म जगत, जिसका स्वप्न में अनुभव करते हैं और 3.तीसरा कारण जगत, जिसकी अनुभूति सुषुप्ति में होती है।

तीन अवस्थाओं से आगे: सोलह कलाओं का अर्थ संपूर्ण बोधपूर्ण ज्ञान से है। मनुष्‍य ने स्वयं को तीन अवस्थाओं से आगे कुछ नहीं जाना और न समझा। प्रत्येक मनुष्य में ये 16 कलाएं सुप्त अवस्था में होती है। अर्थात इसका संबंध अनुभूत यथार्थ ज्ञान की सोलह अवस्थाओं से है। इन सोलह कलाओं के नाम अलग-अलग ग्रंथों में भिन्न-भिन्न मिलते हैं। यथा… अलगे पन्ने पर जानिए 16 कलाओं के नाम… इन सोलह कलाओं के नाम अलग-अलग ग्रंथों में अलगे अलग मिलते हैं।

तीन अवस्थाओं से आगे: सोलह कलाओं का अर्थ संपूर्ण बोधपूर्ण ज्ञान से है। मनुष्‍य ने स्वयं को तीन अवस्थाओं से आगे कुछ नहीं जाना और न समझा। प्रत्येक मनुष्य में ये 16 कलाएं सुप्त अवस्था में होती है। अर्थात इसका संबंध अनुभूत यथार्थ ज्ञान की सोलह अवस्थाओं से है। इन सोलह कलाओं के नाम अलग-अलग ग्रंथों में भिन्न-भिन्न मिलते हैं। यथा… अलगे पन्ने पर जानिए 16 कलाओं के नाम… इन सोलह कलाओं के नाम अलग-अलग ग्रंथों में अलगे अलग मिलते हैं।

*1.अन्नमया, 2.प्राणमया, 3.मनोमया, 4.विज्ञानमया, 5.आनंदमया, 6.अतिशयिनी, 7.विपरिनाभिमी, 8.संक्रमिनी, 9.प्रभवि, 10.कुंथिनी, 11.विकासिनी, 12.मर्यदिनी, 13.सन्हालादिनी, 14.आह्लादिनी, 15.परिपूर्ण और 16.स्वरुपवस्थित।

*अन्यत्र 1.श्री, 3.भू, 4.कीर्ति, 5.इला, 5.लीला, 7.कांति, 8.विद्या, 9.विमला, 10.उत्कर्शिनी, 11.ज्ञान, 12.क्रिया, 13.योग, 14.प्रहवि, 15.सत्य, 16.इसना और 17.अनुग्रह।

*कहीं पर 1.प्राण, 2.श्रधा, 3.आकाश, 4.वायु, 5.तेज, 6.जल, 7.पृथ्वी, 8.इन्द्रिय, 9.मन, 10.अन्न, 11.वीर्य, 12.तप, 13.मन्त्र, 14.कर्म, 15.लोक और 16.नाम।
16 कलाएं दरअसल बोध प्राप्त योगी की भिन्न-भिन्न स्थितियां हैं। बोध की अवस्था के आधार पर आत्मा के लिए प्रतिपदा से लेकर पूर्णिमा तक चन्द्रमा के प्रकाश की 15 अवस्थाएं ली गई हैं। अमावास्या अज्ञान का प्रतीक है तो पूर्णिमा पूर्ण ज्ञान का।

19 अवस्थाएं : भगवदगीता में भगवान् श्रीकृष्ण ने आत्म तत्व प्राप्त योगी के बोध की उन्नीस स्थितियों को प्रकाश की भिन्न-भिन्न मात्रा से बताया है। इसमें अग्निर्ज्योतिरहः बोध की 3 प्रारंभिक स्थिति हैं और शुक्लः षण्मासा उत्तरायणम्‌ की 15 कला शुक्ल पक्ष की 01..हैं। इनमें से आत्मा की 16 कलाएं हैं।

आत्मा की सबसे पहली कला ही विलक्षण है। इस पहली अवस्था या उससे पहली की तीन स्थिति होने पर भी योगी अपना जन्म और मृत्यु का दृष्टा हो जाता है और मृत्यु भय से मुक्त हो जाता है।

अग्निर्ज्योतिरहः शुक्लः षण्मासा उत्तरायणम्‌ ।
तत्र प्रयाता गच्छन्ति ब्रह्म ब्रह्मविदो जनाः ॥

अर्थात : जिस मार्ग में ज्योतिर्मय अग्नि-अभिमानी देवता हैं, दिन का अभिमानी देवता है, शुक्ल पक्ष का अभिमानी देवता है और उत्तरायण के छः महीनों का अभिमानी देवता है, उस मार्ग में मरकर गए हुए ब्रह्मवेत्ता योगीजन उपयुक्त देवताओं द्वारा क्रम से ले जाए जाकर ब्रह्म को प्राप्त होते हैं।- (8-24)

भावार्थ : श्रीकृष्ण कहते हैं जो योगी अग्नि, ज्योति, दिन, शुक्लपक्ष, उत्तरायण के छह माह में देह त्यागते हैं अर्थात जिन पुरुषों और योगियों में आत्म ज्ञान का प्रकाश हो जाता है, वह ज्ञान के प्रकाश से अग्निमय, ज्योर्तिमय, दिन के सामान, शुक्लपक्ष की चांदनी के समान प्रकाशमय और उत्तरायण के छह माहों के समान परम प्रकाशमय हो जाते हैं। अर्थात जिन्हें आत्मज्ञान हो जाता है। आत्मज्ञान का अर्थ है स्वयं को जानना या देह से अलग स्वयं की स्थिति को पहचानना।

गोपी गीत स्तोत्र (प्रशंसा) के रूप में जाना जाता है, और इस स्तोत्र मात्र शब्दों की माला नहीं बल्कि गोपियों की प्रेम-भावना की प्रस्तुति है | गोपी-गीत, कृष्ण के यश (प्रसिद्धि) को स्पष्ट रूप से प्रदर्शित करता है, यूँ तो ऐश्वर्य बिना (धन) यश संभव नहीं हो सकता। यश इसके बिना प्रसारित नहीं किया जा सकता। ऐशवर्य गोपी-गीत में बहुत अच्छी तरह से माधुर्य लिए प्रवाहित होता है, अतः यह गीत एक मादकता लिए हुए है | इस मादकता को इंदिरा छंद ही पूर्ण रूप से न्याय दे सकता था अतः इसे इसी छंद में कहा गया | श्रीमदभागवतम पांचवा वेद माना जाता है, इसके हर शब्द गूढ़ अर्थ के साथ शोभित हैं, सम्पूर्ण सृष्टि की रचना से लेकर २२ अवतार तक का वर्णन इसमें किया गया है, पहले नौ स्कंध श्रवणीय हैं, जिनमे कथानक के रूप में विभिन्न कथाएं बताई गयी हैं, दसवा स्कंध प्रभु की लीला दर्शाता है, एवं सम्पूर्ण भागवत का एक तिहाई भाग दशम स्कंध में है, ३३५ अध्याय में से ९० अध्याय कहे गए हैं प्रभु की लीला के बारे में, अतः दशम स्कंध को भागवत का प्राण माना गया है, दशम स्कंध में २९वे अध्याय से ३३वे अध्याय में गोपियों के साथ रास का वर्णन है, रास जिसे आधुनिक युग में अर्थ बदल कर घृणित बना दिया गया है, वह एक सच्चा अध्यात्म का एवं आस्था का द्योतक है, गोपी शब्द दो अक्षरों से बना है गो धातु इन्द्रियों को दर्शाती हैं एवं पी तत्सम पीने को अथार्थ इन्द्रियों को पीकर वश में करना, जो इन्द्रियों को वश में कर ले वह गोपी और रास दर्शाता है की किसी भी स्थिति में काम, निश्छल भक्ति प्रेम से ऊपर नही है, जब प्रभु ने रास लीला की थी उस समय उनकी आयु मात्र ७ वर्ष थी, क्या ७ वर्ष की आयु के बालक के साथ काम से युक्त नृत्य हो सकता है, जो वर्णन है उसमे प्रभु की वेणु धुन से खींची सारी गोपियाँ चली आ रही थी उनमे आयु का कोई भेद नही था, बृद्ध भी थी, बालिका भी थी, वेणु की धुन एकाग्रचित होकर ध्यान मग्न होने की दशा है, जब हम एकाग्र होकर किसी भी तरफ ध्यान मग्न हो जाते हैं तो किसी भी अन्य वस्तु का असर नही होता, उसी अवस्था में गोपियाँ परम साधना की अवस्था में थी, उन्हें सब तरफ प्रभु ही प्रभु नज़र आ रहे थे हर गोपी के साथ एक प्रभु, क्या यह लीला किसी भी मायने में विकृत हो सकती है, कहते हैं *श्री राम का चरित्र अनुकरणीय है उन्होंने सब कुछ कर के दिखाया, श्री कृष्ण का चरित्र श्रवणीय है उन्होंने सब कुछ कह कर बताया*|
गोपी गीत ३१वे अध्याय में वर्णित है यह विशुद्ध अध्यात्म-प्रेम-भक्ति-अनुराग का द्योतक है, इसमें प्रभु से मिलन की सीधी स्थिति बताई गयी है, अतः इसे प्राणों का प्राण कहते है, कोई भी भागवत कथा सम्पूर्ण गोपी गीत के बिना अधूरी कही जाती है |

इंदिरा का मतलब होता है ऐश्वर्य, एवं जो ऐश्वर्य दांन से हो अतः आध्यात्मिक धन दान करने वाला यह गीत प्रभु को आकर्षित करता है | गोपियाँ जब इस ऐश्वर्य के दान को ग्रहण करती हैं तो यह मात्र भक्ति का वरदान है, जो की भगवान् कृष्ण के रूप में उन्हें चाहिए, अन्य कुछ नहीं, कोई भी सांसारिक वस्तु नहीं |
छंद शास्त्र में इंदिरा छंद अन्य दो नामों से और जाना जाता है १) ललित छंद २) कनक मंजरी छंद ज्यूँ कनक मंजरी पुष्प में एक मादकता होती है वैसे ही इस गीत में एक शिष्ट मादकता है, गोपी-गीत रुषी-रूपा और श्रुति-रूपा गोपियों द्वारा गाया गया बताया जाता है और वे इंदिरा छंद की ज्ञाता थीं |
इस छंद के प्रत्येक चरण में ग्यारह वर्ण होते हैं जो शरणागति एकादशी को बिम्बित करते हैं, और यह एकादस ही कृष्ण को गीत के पश्चात् प्रकट होने के लिए विवश करता है | लघु गुरु के क्रम से सज़ा यह छंद विरह एवं रुदन की लय के लिए जाना जाता है, यह लघु गुरु का क्रम ही इस गीत को लय प्रदान करता है एवं यह भी इंगित करता है की कब छंद पश्चात् रुदन की सिसकारी आती है, यह लय ही ध्वनि योजना कहलाती है हो एक प्रेरक सन्देश देती है , इसी सन्देश को पाकर श्री कृष्ण तत्काल प्रकट हो जाते हैं।।।।

शरद श्वेत सित संहृता, शीतल समीर सैन
नीरव नीरज नीर सम, नाचत नटखट नैन

श्वेत हंस का अबद्ध कलरव, सस्मित नारी सा परिभाषित
ध्वनि मंजीर गौर वर्ण देह, चन्द्र नायिका सा आभाषित
रजनी का शीतल विधु करता, उद्वेलित गहन शांत मन को
श्वेत मालती विकसित बनती, सप्त वर्णी शुक्ल उपवन को

जलरहित श्वेत मेघ नभ विचर, देख रहे अब अवनी तट को
रजत, शंख, मृणाल से हैं ये, चामर डुलाते वंशीभट को
पावस पश्चात् नील अम्बर, करते अ-प्रतिम शोभा मंडित
लाल लाल पुष्प, नीलाकाश, कांतिमय करें मन उत्कंठित

मनमोहक प्रभा है प्रसारित, दे दृगानंद तृप्त विधु करे
मानो विप्रयोगित विषदिग्ध, शर आहत प्रेयषी दुख भरे
शीतल अनिल रवि प्रभात की, तुहिन कणों को सुखा रही है
फलाच्छादित वृक्ष शाखा को, प्रकृति भूमि पर झुका रही है

मेघविहीन व्योम विभा कांति, लेकर यह सुशोभित हो रहा
मरकत मणि विधुजल से विकसित,रक्तोपल प्रभाषित हो रहा
महारास करने सजी धरा, जमुना तट की पावन देखो
पुर्ण शरद आई मनमोहक, मनमोहन का नर्तन देखो

दुष्ट दलन को जगत तरन को, सृष्टि गीत सुनने लगती है
तब चिर निंद्रा चीर मनुज की, ऋतु शंख बजाने लगती है
माँ सिंह वाहिनी है आती, आसीन हो केहरि पर देखो
महिष वध को दुर्गेश नंदिनी, लेकर शस्त्र खड़ग कर देखो ।

कालिंदी तट को जब शीतल, समीर सुरभित कर जाती है
मध्य रात्रि में चंचल जल पर, जब चन्द्र प्रभा बिखराती है
हृदय पियूष कुंड स्पंदित हो, धम धम कर शोर मचाता है
हे श्याम देख तेरी लीला, अंतस हर्षित हो जाता है

नम निशा का पूर्ण शरद चन्द्र, चांदनी से नभ भिंगोता है
खिली चांदनी में निश्चिंत हो, प्रियतम सारा ब्रज सोता है
तब याद आता है वो रास, और हृदय विह्वल होता है
वृष्णिधुर्य तेरे वियोग में, ये चित्त द्रवीभाव रोता है
– राकेश रावल

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