November 23, 2024

मर्यादा कहने सुनने की (ताटंक)

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कहने सुनने वाली भाषा, शान मर्यादा रखती है।
केवल कहने सुनने से जो, दुख भी आधा करती है।
बातचीत ऐसा मसला जो, विकास कार्य को रचती।
युद्ध क्रुद्ध दिशाहीन कभी,अनुचित चाल चल पड़ती।

कहा सुनी से सीधा आशय, विध्वंस को इंगित करना।
कानाफूसी अंदाज रोग, आधार अलग ही रहना।
उसी मोड़ दोराहे जानो, विघटन कारण बन सकता।
कहना सुनना पृथक रहकर, बातचीत धारण करता।
स्वस्थ वार्तालाप बताता, सम्मान से दुनिया चलती।
बातचीत ऐसा मसला जो, विकास कार्य को रचती।
युद्ध क्रुद्ध दिशाहीन कभी,अनुचित चाल चल पड़ती।

तंज प्रहार बातचीत में, सुबह_सुबह की राधे_राधे।
जो वाचाल मौन हो जाए, टीस चुभन से आधे आधे।
शुभ घड़ी में मूक परिभाषा, गलत समझना परंपरा।
हारे स्वस्थ कुशाग्र मनुज, विचलित जो था हरा भरा।
दो पाटन बिच साबुत कैसे, पिसने की चाकी चलती।
बातचीत ऐसा मसला जो, विकास कार्य को रचती।
युद्ध क्रुद्ध दिशाहीन कभी,अनुचित चाल चल पड़ती।

आधी अनमनी वार्ता बीच, प्रफुल्ल मन रहे शामिल।
बात बिगड़ने के पूर्व ही, ठीक नीति में यदि काबिल।
’अटल’ काव्य पे गौर करते, छोटे मन से बड़ा नहीं।
बिगाड़े हर घटना में स्तर, टूटे मन से खड़ा नहीं।
कविता धारा संदेशों को, हृदय में ध्यान नहीं धरती।
बातचीत ऐसा मसला जो, विकास कार्य को रचती।
युद्ध क्रुद्ध दिशाहीन कभी,अनुचित चाल चल पड़ती।

छोटी बात का बड़ा महत्व, हमने जीवन में माना।
दैनिक जीवन सहेजने में, अच्छे रिश्तों को महकाना।
आपके इर्द_गिर्द बैठकर, समझो उनका बहकाना।
बड़ी बात का हल तोड़ यही, चक्र_व्यूह तोड़ा जाना।
कहा_सुनी भी तोड़ो ऐसे, तो पलक पांवड़े बिछती।
बातचीत ऐसा मसला जो, विकास कार्य को रचती।
युद्ध क्रुद्ध दिशाहीन कभी,अनुचित चाल चल पड़ती।

घर समाज की बातचीत में, अनबन विरोध टूट वजह।
लघु रूप सूत्र सिद्धांत से, मिलती राहत भरी सुलह।
हरेक कार्य में टोक_टाक, क्यों रहती बहुत जरूरी।
अपनों की सहनशीलता में, जब बन जाते मगरूरी।
ये कह सुनकर ’मुन्ना’ संदेश, अपनों की नैय्या चलती।
बातचीत ऐसा मसला जो, विकास कार्य को रचती।
युद्ध क्रुद्ध दिशाहीन कभी,अनुचित चाल चल पड़ती।

कहने सुनने वाली भाषा, शान मर्यादा रखती है।
केवल कहने सुनने से जो, दुख भी आधा करती है।
बातचीत ऐसा मसला है, खुशियों भरा किला गढ़ती।
युद्ध क्रुद्ध दिशाहीन कभी,अनुचित चाल चल पड़ती।
कहने सुनने वाली भाषा, शान मर्यादा रखती है।
केवल कहने सुनने से जो, दुख भी आधा करती है।
(रचयिता:विजय गुप्ता ’मुन्ना’ दुर्ग 08 nov 23)

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