पुस्तक कुछ कहती है
समय के अश्व (कविता संग्रह)
कवयित्री – प्रियंवदा पांडेय
प्रकाशक – नोशन प्रेस चैन्नई
प्रथम संस्करण -2023
मूल्य – 300 रुपए
अज्ञेय जी ने नई कविता के जिस बीज का रोपण किया था वह आज बहुत बड़े वटवृक्ष के रूप में स्थापित होकर मन को शीतलता प्रदान करने के साथ वैचारिकता का प्रस्फुरण भी कर रहा है। कवि गोलेन्द्र पटेल ने कविता के बारे में ठीक ही कहा है कि “कविता आत्मा की औषधि है।” अज्ञेय जी से शुरू हुआ नई कविता का कारवाँ शमशेर बहादुर सिंह, गिरिजाकुमार माथुर, कुँवरनारायण सिंह, धर्मवीर भारती, प्रभाकर माचवे, रघुवीर सहाय, भवानीप्रसाद मिश्र, केदारनाथ सिंह, मंगलेश डबराल, कुमार अंबुज से होता हुआ “समय के अश्व” पर सवार होकर प्रियंवदा पांडेय जी तक आ पहुँचा है।
प्रियंवदा पांडेय जी की संवेदनाएँ और अनुभूतियाँ एक ओर शहरी परिवेश की हैं तो दूसरी ओर ग्रामीण परिवेश भी उनसे अछूता नहीं रहा है। परिवेश कोई सा भी हो उनकी कविताओं की भाषा में सोंधापन और सहजता का सौंदर्य विद्यमान रहा है। “धान रोपती औरतें” में सहज भाषा में गहन संदेश निहित है –
“उन्होंने नहीं पढ़ा
विज्ञान का वह रहस्य
जो बताता है कि पौधों को संगीत प्रिय है
संगीत सुनने वाले
पौधों का विकास तीव्र होता है
….. वे गाती हैं मुक्तकंठ गीत”
प्रियंवदा जी की सोच के अश्व समाज और व्यक्ति के सुख-दुःख, प्रेम-उल्लास, पीड़ा-प्रतिरोध पर तीक्ष्ण दृष्टि डालते हुए चलते हैं जिससे उनकी कविताएं समय को प्रतिबिंबित और मुठभेड़ करती हुई हैं। “याद रखना” में वे वर्तमान के छलावे पर सचेत करती हैं –
“कोई तुम्हारे हुस्न के कलमे पढ़ेगा
….पर न जाना भूल
….याद रखना, पुन्श्चली और स्वैरिणी की टोलियों।”
प्रियंवदा जी के लिए रिश्ते बहुत अहमियत रखते हैं फिर चाहे वे पारिवारिक हों या मैत्रिक। ये संबंधों की प्रगाढ़ता ही है कि “समय के अश्व” को भाई-बहनों को समर्पित किया है। अपनी जड़ों से लगाव “खेत की मिट्टी” में देखने को मिलता है –
“खेत की मिट्टी से
आ रही थी पूर्वजों की गंध
… पिता, पितामह की दृष्टि से
… आत्मा कहने लगी थी कभी न छोड़ें खेत।”
वे स्त्री की व्यथा-कथा से भली-भाँति भिज्ञ हैं लेकिन पुरूषों के साथ-साथ वे इसके लिए स्त्रियों को भी “अथ स्त्री कथा” में दोषी मानती हुई पूछती हैं –
“यदि उत्तर हाँ है, तो तुम ही तो हो,
स्त्री की ज्ञाताज्ञात शत्रु।
फिर समूची स्त्री जाति का भला हो भी तो कैसे?”
कोई भी रचनाकार जब अपनी मिट्टी, अपनी जड़ों से जुड़ा होता है तो वह यथार्थ और मानवता की बात करता है। फैंटेसी में काल्पनिक विचारों में गोते लगाने की जगह वह दुख-दर्द, शोषण, समय की विसंगतियां तथा विद्रूपता की आवाज जोरदार ढंग से अपनी कलम से उठाता है। ऐसे में उसकी रचनाओं से बोझिलपन के स्थान पर अभिव्यक्ति की ज्वाला धधकती है जो पाठक के हृदय में सीधे उतर जाती है। प्रियंवदा जी की कविताएँ ऐसी ही वैचारिक ज्वाला लिए हुए हैं। “मैं स्वप्न में हूँ” की तीक्ष्ण वेदना –
“जी हाँ मैं उस स्वप्न में हूँ
जहाँ बोलने की सजा बलात्कार से बड़ी है।”
प्रियंवदा जी का शब्द-कोष बहुत समृद्ध है। जिससे पाठकों का नए नए शब्दों जैसे क्रोध (गोद), पुन्श्चली व स्वैरिणी (व्यभिचारिणी), शकुन्त (पक्षी) से परिचय होता है। वे मानव मनोविज्ञान की गहराइयों में उतर कर अपनी कविताएँ रचती हैं जिससे पाठकों को झकझोर कर सोचने-विचारने के लिए विवश कर देती हैं।
संग्रह की कविताओं में विषयों की विविधता है। प्रगतिशील होते हुए भी विशेष विचारधारा, विशेष विमर्श व अति बौद्धिकता का समावेश उनकी कविताओं में नहीं है। जिससे कविताएँ सभी के लिए पठनीय व विचारणीय हैं।
डॉ किशोर सिन्हा जी द्वारा पृष्ठ-शब्द-सज्जा बहुत बढ़िया है। आवरण बहुत आकर्षक है।
प्रियंवदा पांडेय जी का कविता संग्रह “समय के अश्व” के कविता अश्व पाठक संसार में अश्वमेध यज्ञ के अश्व की तरह अपनी पहुँच तथा प्रभाव बनाने में सफल होंगे।
मधुर कुलश्रेष्ठ
नीड़, गली नं 1, आदर्श कॉलोनी, गुना
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