November 22, 2024

वो कहते हैं क्या लिखती हो
हंसकर इतना कह देती हूँ ।

माँ की लोरी, पापा का लाड़
दादी-नानी भी लिखती हूँ
बढ़ती महंगाई के इस युग में
आंखो का पानी लिखती हूँ ।

वो कहते हैं क्या लिखती हो
हंसकर इतना कह देती हूँ ।

काजल, बिंदिया, कंगना, रोली
पायल की रुनझुन लिखती हूँ
नम आंखों से कोरे पन्नों पर
जज़्बातों को सुन लिखती हूँ

वो कहते हैं क्या लिखती हो
हंसकर इतना कह देती हूँ ।

सुप्त हृदय की बंद खिड़की के
रौशन भावों को लिखती हूँ
मरुभूमि के तप्त हृदय के
भीतर घावों को लिखती हूँ

वो कहते हैं क्या लिखती हो
हंसकर इतना कह देती हूँ ।

रूपाली सक्सेना भोपाल

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