इस दिवाली कुछ बदल देना
सखियों!
घर के पर्दे, सोफा कवर तो बदलोगी ना
अपने सोचने का तरीका भी बदल देना
दीयों को जब तेल और बाती से सजाओगी
मन के कंगूरे पर भी एक रख देना
इस बार राशन के खाते के साथ
अपनी कविताओं की भी एक डायरी बनाना
इस दिवाली खुद के लिए जीना
इस दिवाली रोज के खाने के साथ
अपनी कविताओं के लिए शब्द भी पकाना
दाल चावल गेहूं के कंकर तो तुमने बहुत चुने होंगे
इस दिवाली अपने लिए अक्षर चुनना
शक्करपारे, सलोनी, नमकीन,मठरियों के लिए लोई को चाकू से काटा होगा ना
अब अपने शब्दों को काट छांट के सुंदर बनाना
अपने घर के दरवाजों पर जब बिजली की लड़ियां लगवाओ
अपनी कविताओं में भावनाएं टांक देना
क्या कहा?
तुम्हें कविताएं लिखना नहीं आता
खाना बनाना आता था क्या?
ताने भी तो नहीं सुने होंगे
घर का काम,बच्चों की परवरिश
सब तो सीख गई ना!
दुनिया की हर बात की चिंता करने की जरूरत नहीं तुम्हें
कभी खत्म होते जीरा, कभी कम पड़ते नमक की चिंता तो करती हो ना
इस दिवाली कविताओं की फिक्र करो ना
और हां, विषयों के लिए तुम्हें नहीं भटकना होगा
अपनी जिंदगी की किताब खोल लेना
तुम्हारी बनाई रंगोली अगले दिन मिटने वाली है
फिर भी बनाती तो हो ना
कविताएं तो तुम्हारी डायरी के पृष्ठों पर सजी रहेंगी
बरसों
और तुम थोड़ी हिम्मत करो, उन्हें सुधारो, सीखो तो छप भी सकती हैं।
इस दिवाली कविताएं लिखो।
पूरे साहस व विश्वास के साथ सखियों से साझा करो
चलो ना! इस दिवाली
कुछ बदलते हैं
कविताएं लिखते हैं
#सोनालीयाना
डाॅ.सोनाली चक्रवर्ती