ताज़ा ग़ज़ल
न दैरो हरम का पता चाहती हूँ
ये रब जानता है मैं क्या चाहती हूँ
के दम घुट रहा है मेरा शीशा-घर में
मैं नन्ही सी चिड़िया रिहा चाहती हूॅं
बहुत सी ख़ताएं भी मुझसे हुई हैं
मैं हर इक ख़ता की सज़ा चाहती हूँ
मियां मीर जैसा बना दे ख़ुदाया
मैं सज़्दे में सर ये झुका चाहती हूँ
गुलाबी न नीला स्लेटी न पीला
दुपट्टा वही मैं हरा चाहती हूँ
मेरा दम ये मुर्शिद के चरणों में निकले
मैं कुछ भी न इसके सिवा चाहती हूँ😥😭
मैं नानक की बेटी हूँ गिरधर की जोगन
मैं भक्ति का आलम नया चाहती हूँ
तरन्नुम’ मेरी बस तमन्ना यही है
मैं, रघुवर, मैं नानक ख़ुदा चाहती हूँ
रितिका ‘तरन्नुम’✍️