December 3, 2024

नौकरी मे यूँ हुआ अक्सर

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नौकरी मे यूँ हुआ अक्सर
जोकरों को भी कहा सर सर।

चार मिसरे जो न लिख पाए
मंच पर बैठे प्रवर कविवर।

सामने बइमान बंदों के
काँपता ईमान थर थर थर।

हो रहा है, देखते हम रोज़
धोक दें नेता के घर अफसर।

देख टीचर छोड़कर स्कूल
वोट-पर्ची बाँटता घर घर।

पी रहा छत पर कोई सिगरेट
नीचे है हरिया का घर-छप्पर।

छोड़ ख़ुद को सुख़नवर कहना
लिख रहा है तू जो डर डर कर।

दिनेश मालवीय “अश्क”

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