November 21, 2024

(सुख दुख की कविताएँ )

दुख का सीधा मुकाबला
सुख से था

सुख के पक्ष में सत्ता थी
मक्कारी थी
अय्यारी थी
दुख को धूल चटवाने की
पूरी तैय्यारी थी

सुख के कार्यकर्ताओं में
सौ बार बोले जा चुके झूठ थे
धोखा आतंक अनाचार थे
जनता पर किये अत्याचार थे

लोभ लालच उसके पिठ्ठू थे
अनीति उसकी प्रवक्ता थी
बेईमानी उसकी वित्त प्रबन्धक
सुविधायें उसकी गुलाम थीं
सितारों की उस पर कृपा थी
आकाश मेहरबान था
सुख के झंडे पर
स्वप्न का निशान था

सुख के ताकत के आगे
लाचार था दुख
अपने रोने के अलाबा
उसके पास ऐसा कुछ नहीं था
जिससे वह सुख का
मुकाबला कर सकता

फिर भी दुख ने संघर्ष किया
कोशिश की सुख से जीतने की
और हार गया
दुख नहीं पहुँचा संसद तक
सुख वहाँ हर बार गया ।

शरद कोकास

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