“सुरता : केदार यादव”
(अट्ठाइसवीं पुण्यतिथि पर स्मरणांजलि)
केदार यादव का जन्म दुर्ग में 06 जून 1952 हो हुआ था। उनके दादा बाँस गीत के गायक थे और पिताजी श्री झुमुकलाल डिहारी नाचा के लोक कलाकार थे। पारिवारिक पृष्ठभूमि ही उनकी प्रेरणा का स्रोत थी। बचपन से ही उन्हें गाने और तबला-ढोलक बजाने का शौक था। वे बांगो और केटल वादन में भी सिद्धहस्त थे। युवावस्था की शुरुआत में ही दुर्ग शहर में ढोलक और तबला वादक के रूप में उनकी पहचान बनने लगी थी।
“कैरियर की शुरुआत दाऊ रामचन्द्र देशमुख कृत “चंदैनी गोंदा” से”
केदार यादव के जीवन का उन्नीसवाँ वर्ष उनके लिए एक नया अध्याय लेकर आया। इसी वर्ष (1971) ग्राम बघेरा में दाऊ रामचन्द्र देशमुख चंदैनी गोंदा के प्रथम प्रदर्शन की तैयारी में जुटे थे। संगीतकार खुमानलाल साव बघेरा में आकर अकेले ही हारमोनियम पर लोक गीतों और आंचलिक कवियों के गीतों की धुन कम्पोज़ करने में भिड़ जाते थे। धुन तैयार होने पर वे दाऊ जी से कहते थे – दाऊ जी! धुन तो तैयार हो गयी है। अब तबला वादक की व्यवस्था कीजिये। तब दाऊ जी अपने सहायक अघनू को कहते थे कि दुर्ग जाकर केदार यादव को लेकर आओ। अघनू सायकल से दुर्ग जाता था और केदार को सायकल में बिठाकर बघेरा लाता था। उसके बाद खुमान साव जी हारमोनियम लेकर बैठते थे और केदार यादव उनकी धुनों पर तबला लेकर रात-रात भर संगत किया करते थे, हालाँकि चंदैनी गोंदा के मंचीय कार्यक्रमों में वे ढोलक बजाया करते थे। तबला वादन महेश ठाकुर किया करते थे।
बाद में अन्य वादक और गायक कलाकार आते रहे, रिहर्सल होती रही और गीतों का श्रृंगार होता रहा। अंततः 07 नवम्बर 1971 को ग्राम बघेरा में चंदैनी गोंदा प्रदर्शन के लिए तैयार हो गया। इस प्रकार केदार यादव ने संगीतकार खुमानलाल साव के साथ चंदैनी गोंदा के संगीत में अपनी बुनियादी भूमिका का निर्वाह किया। केदार यादव ढोलक बजाते थे, महेश ठाकुर तबला वादन करते थे। संतोष कुमार टांक बाँसुरी तो गिरिजा कुमार सिन्हा इलेक्ट्रिक बेंजो बजाया करते थे। इस टीम के मोहरी वादक पहले रायधर लाल गंधर्व थे बाद में पंचराम देवदास मोहरी वादन किया करते थे। वैसे ही बाद में वायलिन वादक श्रवण कुमार दास भी इस टीम में जुड़े।
चंदैनी गोंदा के प्रथम प्रदर्शन में मुख्य गायक गीतकार रविशंकर शुक्ल और भैयालाल हेड़ाऊ थे। चंदैनी गोंदा का दूसरा कार्यक्रम ग्राम पैरी में हुआ था जहाँ से लक्ष्मण मस्तुरिया नए गायक के रूप में उभरे थे। इन तीनों गायकों के रहते केदार यादव को गायक के रूप में प्रस्तुत नहीं किया गया था, वे चंदैनी गोंदा में ढोलक ही बजाया करते थे। कभी किसी कार्यक्रम में उपरोक्त तीनों गायकों में किसी की अनुपस्थिति होती थी तब केदार यादव को कैजुअल गायक के रूप में अवसर मिल जाया करता था। हालाँकि ऐसे अवसर बहुत कम आये। गायन की प्रतिभा रहने के बावजूद चंदैनी गोंदा में वे रेगुलर गायक भले ही नहीं बन पाए फिर भी इसी मंच से उन्हें पहचान मिली अतः वे दाऊ रामचन्द्र देशमुख को अपना आदर्श मानते थे।
“सोनहा बिहान : “अरपा पैरी के धार, महानदी हे अपार” के प्रथम म्यूजिक कंपोजर”
कुछ समय बाद दुर्ग के दाऊ महासिंह चन्द्राकर ने सोनहा बिहान का मंचन किया। केदार यादव उसमें भी जाते थे। गीतकार डॉ. नरेन्द्र देव वर्मा के सुप्रसिद्ध गीत “अरपा पैरी के धार, महानदी हे अपार” की धुन गीतकार ने स्वयं बनायी थी। केदार यादव ने सर्वप्रथम इस गीत के लिए संगीत कम्पोज़ किया था। जब सोनहा बिहान के मंच से पहली बार यह गीत प्रस्तुत किया गया था तब मुख्य स्वर केदार यादव का ही था। अन्य गायक-गायिओं ने कोरस में साथ दिया था। बाद में देवरी-बंगला के गोपालदास वैष्णव जी ने, जो शास्त्रीय संगीत के अच्छे जानकार थे, इस गीत के संगीत को परिमार्जित किया था। इस प्रकार “अरपा पैरी के धार, महानदी हे अपार” के प्रथम म्यूजिक कंपोजर होने का श्रेय भी केदार यादव के खाते में जाता है।
सोनहा बिहान में ही केदार यादव ने साधना यादव के साथ सुपरहिट पारंपरिक ददरिया “मोर झुलतरी गेंदा इंजन गाड़ी सेमर फुलगे” को गाकर अपने श्रेष्ठ गायक होने का परिचय दिया। यह गीत इतना अधिक लोकप्रिय हुआ कि दाऊ रामचन्द्र देशमुख जी ने इस गीत का मंचन चंदैनी गोंदा के मंच से “नेहरू हाउस ऑफ कल्चर, भिलाई के कार्यक्रम में किया जिसे स्वर दिया था लक्ष्मण मस्तुरिया और अनुराग ठाकुर ने। चंदैनी गोंदा के प्रदर्शन में गीतकार लक्ष्मण मस्तुरिया ने इस पारंपरिक गीत के साथ अपने दो ददरिया और जोड़े –
आ मोर बइँहा मा गाँजा कली
गाड़ी चढ़के बम्बई कोती भाग चली, मोर झुलतरी
भागे उड़े जीव नइ बाँचे रे
आके डोलिया सजा मोला ले जाते रे, मोर झुलतरी
पारंपरिक ददरिया में ये दो अतिरिक्त ददरिया केवल चंदैनी गोंदा के मंच से गाये गये। प्रत्येक ददरिया के बाद दर्शकों की तालियों से हॉल गूँज उठता था।
“नवा-बिहान” की स्थापना”
चंदैनी गोंदा और सोनहा बिहान से जुड़े रहते हुए भी केदार यादव ने “नवा-बिहान” नामक लोक मंच की स्थापना की जिसके मुख्य गायक वे स्वयं थे। नवा बिहान की मुख्य गायिका उनकी जीवन संगिनी श्रीमती साधना यादव थीं। नवा बिहान मंच भी छत्तीसगढ़ में अत्यंत ही लोकप्रिय हुआ और केदार यादव छत्तीसगढ़ के बेहतरीन गायक के रूप में स्थापित हो गए। “नवा बिहान” में जब वे तबला बजाते हुए गाते थे तब उनकी प्रतिभा को देखकर दर्शक दाँतों तले उँगली दबाने को मजबूर हो जाते थे।
नवा बिहान में केदार यादव के गाये गीत – मोर झुलतरी गेंदा, हमरो पुछैया भइया कोनो नइये गा, तैं बिलासपुरहिन अउ मँय रैगढ़िया, का तैं मोला मोहनी डार दिए गोंदा फूल, तोर नैना के लागे हे कटार, होगे नवा बिहान आदि बहुत लोकप्रिय हुए। उनके अनेक गीत आकाशवाणी रायपुर के सुर सिंगार कार्यक्रम की शोभा बढ़ाते रहे। उन्होंने हरि ठाकुर, बद्रीविशाल परमानन्द, रामेश्वर वैष्णव, मुकुन्द कौशल आदि के अनेक गीतों को अपना स्वर देकर अमर कर दिया। केदार यादव ने अपने गीतों को फूहड़ता से सदैव बचाकर रखा।
“पॉलिडोर (म्यूज़िक इंडिया लि.) मुम्बई में गीतों के ई.पी. रिकार्ड्स”
दुर्ग के ताज अली थारानी ने लक्ष्मण मस्तुरिया से संपर्क कर उनके गीतों के दस रिकार्ड्स बनाने की मंशा जाहिर की थी तब लक्ष्मण मस्तुरिया ने उन्हें कहा था कि दुर्ग में एक प्रतिभावान युवा गायक है। मैं चाहता हूँ कि इन दस रिकार्ड्स में दो रिकार्ड उनके गीतों के भी बनें। आठ रिकार्ड मेरे गीतों के बना लीजिए। उन्होंने केदार यादव के बारे में यह बात कही थी। उनके प्रस्ताव को सहर्ष स्वीकार करते हुए ताज भाई ने कहा ठीक है। आपके नौ और केदार के दो रिकार्ड बना लेते हैं। इस प्रकार जून 1982 को चंदैनी गोंदा के कलाकारों के साथ केदार यादव और साधना यादव भी बम्बई गए जहाँ केदार-साधना के गाए दो रिकार्ड्स पॉलिडोर (म्यूज़िक इंडिया लि.) में बनें। पहले रिकार्ड का नाम था –
“मनभावन गीत” (रिकार्ड नम्बर 2222839) जिसके साइड 1 में “मोर झुलतरी गेंदा इंजन गाड़ी सेमर फुलगे” और “साइड 2 में दो गीत क्रमशः “तोर रूप गजब मोला मोह डारिस” और “तैं अगोर लेबे रे संगी संझा के बेरा तँय अगोर लेबे” थे।
दूसरे रिकार्ड का नाम था “लहर गीत” (रिकार्ड नंबर 2222840) इसके साइड 1 में दो गीत क्रमशः
तँय बिलासपुरहिन अस अउ मँय रइगढ़िया और
तैं ह आ जाबे मैना उड़त उड़त तैं हा आ जाबे थे। इसी रिकार्ड के साइड 2 में भी दो गीत क्रमशः
का तैं मोला मोहनी डार दिए गोंदा फूल और
तुक के मारे रे नैना के बान बइरी थे। इस प्रकार दोनों रिकार्ड्स में केदार साधना के कुल सात गीत रिकार्ड हुए। ये सभी गीत आज भी बड़ी ही शिद्दत से सुने जाते हैं।
दिखावापन से दूर सरल-सहज व्यवहार के धनी, अत्यंत ही मिलनसार और संगीत के सच्चे साधक केदार यादव 16 जनवरी 1996 को मात्र 44 वर्ष की अल्पायु में ही महाप्रयाण कर गये। आज अट्ठाइसवीं पुण्यतिथि पर हम अपने श्रद्धा-सुमन अर्पित करते हैं।
आलेख – अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़)