सृजन के क्षणों में
मेरे लिये
कमीज के बटन का टूटना भी
कविता का विषय है
टूटते नक्षत्रों को
नहीं कर सकता अनदेखा
ये सृजन के सूत्र हैं
जहाँ से शुरू होती है
विचार की यात्रा
सृजन के क्षणों में
छोटी बड़ी सभी वस्तुएं
शब्द को
गहरे सामर्थ्य से भर देती हैं
शब्द भी ढाल देते उसे
नई अर्थवत्ता के साथ
कहाँ खत्म होती है
कोई चीज
कुछ न कुछ रूपांतरण
घट रहा हर पल , कहीं न कहीं
यह सृजन नहीं तो क्या है ?
कि आती जाती हर साँस में
तुम्हें अलग तरह से
महसूस करता हूँ
याद करता हूँ बिल्कुल नये ढंग से
सृजन की नाव
हर पल
मेरे अंतस्तल में चल रही है हौले हौले
जहाँ विचार के चप्पुओं से
काटता रहता हूँ मैं
समय के गहरे नीले
समुद्र के उछलते जल को
सतीश कुमार सिंह