November 22, 2024

मेरे लिये
कमीज के बटन का टूटना भी
कविता का विषय है

टूटते नक्षत्रों को
नहीं कर सकता अनदेखा
ये सृजन के सूत्र हैं
जहाँ से शुरू होती है
विचार की यात्रा

सृजन के क्षणों में
छोटी बड़ी सभी वस्तुएं
शब्द को
गहरे सामर्थ्य से भर देती हैं
शब्द भी ढाल देते उसे
नई अर्थवत्ता के साथ

कहाँ खत्म होती है
कोई चीज
कुछ न कुछ रूपांतरण
घट रहा हर पल , कहीं न कहीं
यह सृजन नहीं तो क्या है ?
कि आती जाती हर साँस में
तुम्हें अलग तरह से
महसूस करता हूँ
याद करता हूँ बिल्कुल नये ढंग से

सृजन की नाव
हर पल
मेरे अंतस्तल में चल रही है हौले हौले
जहाँ विचार के चप्पुओं से
काटता रहता हूँ मैं
समय के गहरे नीले
समुद्र के उछलते जल को

सतीश कुमार सिंह

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