November 21, 2024

1 मई मजदूर दिवस पर मेरी एक रचना

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मजदूर

मुट्ठी में बंद उष्णता, सपने, एहसास लिए,
खुली आंखों से देखता है कोई …..
क्षितिज के उस पार।

बंद आंखों से रचता है इंद्रधनुषी ख्वाबों का संसार।

झाड़ता है सपनों पर उग आए कैक्टस और बबूल….
रोपता है सुंदर फूलों के पौधे बार -बार।

उगता है रोज सुबह नई कोपल सा …
करता है सूर्य की पहली किरण का इंतजार।

मासूम हंसी से मुस्कुराहट लेकर उधार,
चल पड़ता है ख्वाबों का थैला लिए… हंसी लौटाने का वादा कर हर बार।

श्रम, पसीने के सिक्के बाजार में चला
खरीद लेता है कुछ अरमान…
लौटाने मासूम चेहरों पर हंसी,मुस्कान।

कठोर धरती पर गिरते अरमानों को…
आंखों की कोरों में छुपा,
चिपका लेता है चेहरे पर नकली हंसी,
पर अतृप्त आंखें बता देती है उसके दिल का हाल।

निमिषा सिंघल

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