November 21, 2024

सतगुरु कबीर साहेब प्राकट्य दिवस के बहुत बहुत बधाई

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सन्त कवि सतगुरु कबीरदास जी महराज अउ छत्तीसगढ़-खैरझिटिया

संत कवि सतगुरु कबीर दास जी महाराज के नाम जइसे ही हमर मुखारबिंद म आथे, त ओखर जीवन-दर्शन, साखी-शबद अउ जम्मों सीख सिखौना नजर आघू झूल जथे। *वइसे तो कबीरदास जी के अवतरण हमर राज ले बाहिर होय रिहिस, तभो ले, सन्त कवि कबीर दास जी अउ ओखर शिक्षा दीक्षा हमर छत्तीसगढ़ म अइसे रचबस गिस, जेला देखत सुनत कभू नइ लगिस कि कबीरदास जी आन राज के सिध्द संत रिहिन।* सतगुरु कबीर दास जी के नाम छत्तीसगढ़ भर म रोज सुबे शाम गूँजत रहिथे। इहाँ के बड़खा आबादी कबीरपंथी हें, जेला कबीरहा घलो कहिथें,येमा कोनो जाति विशेष नही, बल्कि सबे जाति धरम के मनखे मन कबीर साहब के पंथ ल स्वीकारे हें। छत्तीसगढ़ ल कबीरमय करे म कबीर दास जी के पट चेला धनी धरम दास(जुड़ावन साहू) जी के बड़खा योगदान हे। सुने म मिलथे कि , एक बेर कबीरदास जी नानक देव संग पंथ के प्रचार प्रसार बर छत्तीसगढ़ के गौरेला पेंड्रा म अपन पावन पग ल मढ़ाये रहिन हे, उही समय ,जुड़ावन साहू जी कबीरदास जी ले अतका प्रभावित होइस कि अपन जम्मों धन दौलत ल कबीरदास के चरण कमल म अर्पित कर दिन, अउ ओखर दास बनगिन(जुड़ावन दीक्षा पाके धरम दास होगिन)। अउ हमर परम् सौभाग्य कि धनी धरम दास जी महाराज अपन गद्दी छत्तीसगढ़ म बनाइन, अउ इँहिचे रहिके कबीरपंथ ल आघू बढ़ाइन, अउ छत्तीगढ़िया मन अड़बड़ संख्या म जुड़िन घलो। धनी धरम दास जी ह कबीर के मुखाग्र साखी शब्द मन ल अपन कलम म ढालिस, ओ भी हमर महतारी भाषा छत्तीसगढ़ी म। वइसे तो कबीरदास जी के भाषा ल पंचमेल खिचड़ी या सधुक्कड़ी कहे जाथे, तभो ओखर प्रकशित पोथी म छत्तीसगढ़ी के प्रभाव दिखतेच बनथे–

धनी धर्मदास जी के कुछ छतीसगढ़ी पदः-

मैं तो तेरे भजन भरोसो अविनाशी
तिरथ व्रत कछु नाही करे हो
वेद पड़े नाही कासी
जन्त्र मन्त्र टोटका नहीं जानेव
नितदिन फिरत उदासी
ये धट भीतर वधिक बसत हे
दिये लोग की ठाठी
धरमदास विनमय कर जोड़ी
सत गुरु चरनन दासी
सत गुरु चरनन दासी
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आज धर आये साहेब मोर।
हुल्सि हुल्सि घर अँगना बहारौं,
मोतियन चऊँक पुराई।
चरन घोय चरनामरित ले हैं
सिंधासन् बइ ठाई।
पाँच सखी मिल मंगल गाहैं,
सबद्र मा सुरत सभाई।
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संईया महरा, मोरी डालिया फंदावों।
काहे के तोर डोलिया, काहे के तोर पालकी
काहै के ओमा बाँस लगाबो
आव भाव के डोलिया पालकी
संत नाम के बाँस लगावो
परेम के डोर जतन ले बांधो,
ऊपर खलीता लाल ओढ़ावो
ज्ञान दुलीचा झारि दसाबो,
नाम के तकिया अधर लगावो
धरमदास विनवै कर जोरी,
गगन मंदिर मा पिया दुलरावौ।”

ये पद मन पूर्णतः सतगुरु कबीरदास जी ले ही प्रभावित हे,

धनी धरम दास जी के जनम घलो छत्तीसगढ़ ले इतर मध्यप्रदेश(उमरिया) म होय रहिस, फेर वो जुन्ना समय म मध्यप्रदेश के मेड़ो तीर के गांव सँग गौरेला पेंड्रा के जम्मो इलाका बिलासपुर के सँग जुड़े रहय, तेखर सेती धनी धरमदास जी म छत्तीगढ़िया पन कूट कूट के भरे रिहिस। अउ जब कबीर के साखी शबद रमैनी मन ल धनी धरम दास जी पोथी म उतारिन, त वो जम्मों छत्तीगढ़िया मनके अन्तस् म सहज उतरगे।

धनी धरम दास जी के परलोक गमन के बाद, ओखर सुपुत्र चूड़ामणि(मुक्तामणि नाम साहेब) साहब घलो छत्तीसगढ़ म ही कबीर पंथ के गद्दी ल सँभालिन, अउ कोरबा जिला के कुदुरमाल गाँव म अपन गद्दी बनाइन, कुदुरमाल के बाद कबीर गद्दी परम्परा आघू बढ़त गिस अउ रतनपुर, मण्डला, धमधा, सिंगोढ़ी, कवर्धा म घलो गुरुगद्दी बनिस। चूड़ामणि साहेब के बाद ओखर सुपुत्र सुदर्शन नाम साहेब रतनपुर म गुरुगद्दी परम्परा के निर्वहन करिन, तेखर बाद कुलपति नाम साहेब, प्रमोध नाम साहेब, केवल नाम साहेब —–आदि आदि गुरु मनके सानिध्य म कबीरपंथ छत्तीसगढ़ म फलन फूलन लगिस। *गुरुगद्दी के 12वा गुरु महंत अग्रनाम साहेब ह दामाखेड़ा म धनी धरम दास जी महाराज के मठ सन 1903 म स्थापित करिन, जिहाँ आजो कबीरपंथी मनके विशाल मेला भराथे।* वइसे तो कबीर पंथ के मुख्यालय सन्त कवि कबीरदास जी के नाम म बने जिला कबीरधाम जिला म हे, फेर कबीर पंथी मन छत्तीसगढ़ के चारो मुड़ा म समाये हें।

धनी धरम दास जी ल दक्षिण के गुरुगद्दी के कमान सौपत बेरा कबीरदास जी भविष्यबानी करे रिहिन कि, धरम दास जी के नेतृत्व म कबीरपंथ खूब फलही फुलही, अउ उही होइस घलो। *धनी धरम दास जी, कबीर साहेब के आशीर्वाद ले ,कबीर पंथ के 42 गुरुगद्दी के स्वामी मनके नाम लिख के परलोक गमन करे रिहिन। वर्तमान म 14 वाँ गुरुगद्दी के स्वामी प्रकाशमुनि नाम साहेब जी हे।* छत्तीसगढ़ के कबीरपंथी मन कबीरदास जी महाराज के नीति नियम ल हृदय ले स्वीकार करथें, अउ सुख दुख सबे बेरा कबीरदास जी महाराज के नाम लेथें। छत्तीसगढ़ म कबीरपंथी समुदाय म चौका आरती के परम्परा हें, जेमा कबीर साहेब के साखी शबद गूँजथें। कबीरपंथी छत्तीसगढ़ के उत्तर दक्षिण पूरब पश्चिम चारो मुड़ा सहज मिल जथे, अउ जेमन कबीर पंथी नइहे उहू मन कबीरदास जी के सीख सिखौना ल नइ भुला सकें। सबे जाति वर्ग समुदाय म कबीरदास जी महाराज के छाप हे। छत्तीसगढ़ भर म कबीर जयंती धूमधाम ले मनाये जाथे। जघा जघा मेला भराथे। *दामाखेड़ा, कुदुरमाल, कवर्धा, सिरपुर,नांदिया, खरसिया* आदि जघा कबीरपंथी मनके पावन तीर्थ आय, जिहाँ न सिर्फ कबीर पंथी बल्कि जम्मो जाति समुदाय सँकलाथे।

कबीरदास जी दलित शोषित मनके मसीहा, पीड़ित मनके उद्धारक, दबे कुचले मनके आवाज रिहिन, सामाजिक अन्याय अउ विषमता के घोर विरोधी अउ न्याय संग समता के संस्थापक रिहिन। तेखरे सेती न सिर्फ हिन्दू मन बल्कि मुस्लिम अउ ईसाई मन घलो कबीरदास जी के अनुसरण करिन। कबीरदास जी के दोहा, साखी सबद न सिर्फ कबीरपंथी बल्कि छत्तीसगढ़ के घरों घर म टीवी रेडियो टेप टेपरिकार्डर के माध्यम ले मन ल बाँधत सरलग सुनाथे। कबीरदास जी महराज धनी धरम दास जी कारण छत्तीसगढ़ के कण कण म विराजित हे। कबीरदास जी के दोहा साखी सबद मनके कोनो सानी नइहे, विरोध के सुर के संगे संग जिनगी जिये के सार जम्मो छत्तीगढ़िया मन ल अपन दीवाना बना लेहे। पूरा भारत भर म छत्तीसगढ़ म ही कबीर पंथ के सबले जादा आश्रम अउ गद्दी संस्थान हे। कतको छत्तीगढ़िया मन आपस म *साहेब* कहिके सुबे शाम अभिवादन करथें। जनश्रुति के अनुसार कबीर साहेब के कबीरधाम जिला मा घलो आय जे बात पता चलथे। हमर छत्तीसगढ़ मा कबीरदास जी के नाम मा कबीरधाम जिला हे संगे संग गांव शहर गली खोर मा रामायण मण्डली, भजन मंडली, नाच पार्टी, चौक चौराहा, आश्रम, स्थल, पुस्तकालय, नगर, भवन, घर, दुकान सबे मा कबीर साहब के नाम समाहित हे। कबीर दास जी महाराज भक्ति के कभू विरोध नइ करिन, बल्कि भक्ति के नाम मा पैठ जमाये आडम्बर अउ देखावा ला कोसिन। कबीर साहब जी ला नमन करत, मोर कुछ कुंडलियाँ——

धरहा करके लेखनी, कहिन बात ला सार।
सत के जोती बार के, दुरिहाइन अँधियार।
दुरिहाइन अँधियार, सुरुज कस संत कबीरा।
हरिन आन के पीर, झेल के खुद दुख पीरा।
एक तुला सब तोल, बताइन बढ़िया सरहा।
करिन कलह मा वार, बात कहिके बड़ धरहा।

बानी संत कबीर के, दुवा दवा अउ बान।
साधु सुने सत बात ला, लोभी तोपे कान।
लोभी तोपे कान, कहे जब गोठ कबीरा।
लोहा होवय सोन, चमक खो देवय हीरा।
तन मन निर्मल होय, झरे जब अमरित पानी।
तोड़य गरब गुमान, कबीरा के सत बानी।

जीतेन्द्र कुमार वर्मा”खैरझिटिया”
बाल्को,कोरबा(छग)

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