गांव, रीतिरिवाज और परंपराएं
( प्रथम किस्त…………………बातें कुछ ज्यादा लम्बी है और विभिन्न विषयों पर है इसलिये इसे किस्तो में पोस्ट कर रहा हूं। एक साथ पोस्ट करने से लोग बड़ा मैटर देख कर पढ़ते भी नहीं हैं)
साथयो, गांवों में ऐसे अनेक रीतिरिवाज और परंपराएं हैं जो हमारे सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। ये सभी पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही हैं। इतना ही नहीं, यह भारतीय समाज की विविधता और सांस्कृतिक धरोहर को भी दर्शाता है। गांव के रीतिरिवाज और परंपराएं सामाजिक एकता की भावना को बढ़ावा देती हैं। ये रीतिरिवाज हमारे जीवन का अभिन्न हिस्सा होते हैं और पीढ़ियों से चली आ रही परंपराओं को सजीव रखते हैं।
हर गांव का अपना एक रीतिरिवाज होता है। आप जिस गांव से हैं वहां के भी कुछ रीतिरिवाज होंगे। आइए, आज मैं आपको मेरे गांव के कुछ रीतिरिवाज से अवगत कराता हूं।
हल्दी और नमक……………..
हमारे गांव में सूर्यास्त के बाद किराना दुकानों में नमक और हल्दी नहीं बेचने का रिवाज था। इसे मांगने पर पड़ोसी भी नहीं देते थे। जिसे जरूरत होती थी वे सूर्यास्त के पहले दुकान से या अपने किसी परिचित से ले लिया करते थे। मुझे याद है, हमारे गांव में एक सिंधी भाई ने नई-नई दुकान खोली थी। एक बार उसने भूलवश किसी को नमक बेच दिया। दूसरे दिन ग्राम पंचायत की बैठक में उसको जुर्माना देना पड़ा था। अब आप सोच रहे होंगे कि दोनों तो रसोई के लिए बहुत जरूरी है। अगर अचानक किसी को जरूरत पड़ जाए तो वह क्या करेगा। उसके लिए एक तोड़ भी था। दुकान वाले तो देते ही नहीं थे। हां, पड़ोसी या किसी परिचित से मांगने के लिए उसका नाम बदलना पड़ता था। मुझे याद है, हल्दी मांगने के लिए उसका नाम “बकबक” रखा गया था। जरूरतमंद कहती थी कि मुझे आज थोड़ा बकबक दे दे, कल लौटा दूंगी। नमक के लिए भी कोई शब्द था जो मुझे फिलहाल याद नहीं है।
सांप नहीं डोरी…………….
सूर्यास्त के बाद यदि गांव में किसी को सांप दिख गया तो किसी को बताने के लिए वह डोरी कहता था। जैसे आज हमारे आंगन में एक डोरी निकल आया था।
नमक हल्दी और सांप का नाम रात में क्यों नहीं लिया जाता था इसकी मुझे जानकारी नहीं है। हां यह गांव का एक रिवाज था जिसे मैने बचपन में देखा और सूना हूं उसे यहां आपके साथ साझा कर रहा हूं। यह पोस्ट आपको कैसा लगा, क्या आपको इस रिवाज की जानकारी थी ?
अब कल पढिये सवनाही बरोना………………. गोकुल सोनी