November 15, 2024

रीता दास राम की एक कविता

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सांसें हैं ठिठकी
नींदें बोझिल

न देख पा रहे हैं
न सोच पा रहे हैं

नैतिकता उधड़ रही है
कमियां इमान की तोड़ रही है कमर

तसल्ली देने वाले शब्द बिखर गए हैं
संवेदनाओं से गुजारिश है भावों के तफ्तीश की

दहशत के प्यार से लगना है गले
रूलाई के पोंछना है आंसू

दर्दनाक, मार्मिक से कितना कोई करे परहेज

अबके बच जाएंगे जो शब्द
न दोहराएं जाएंगे, न पढ़ें जाएंगे।

  • रीदारा

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