यात्रा
काल अवधि समय
सब से परे
हिमखंड में हिम
थे थमे
चंद्र देती थी
शीतल लहरियां
बयार में जोशना
थे जमें
बह निकली हिमनद
से सांकरी ठंडी
प्लाव स्त्रोत
पारदर्शी दर्पण से
निकलती थी श्वेत
रजत प्रोत
मार्ग बहा ले
जाती विशाल पिघलते
ऊंचे प्रस्त
रश्मियां भ्रमित हो
प्रतिबिंबित थी प्रत्येक खंड
में हिमवत
सर्वोच्च शिखर से निकलें
बूंद बूंद जल के
अनेक सोतें
कड़कड़ाती हिम
वृष्टियों में मोतियों की
लड़ियां पिरोतें
गति में बहते रहते
सदा से दिशाहीन
पाने स्वयं को अनंत में
अथाह से निर्देशित मगन
होकर आतुर
अपने ही आनंद में
डॉ सीमा भट्टाचार्य
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)