आधी आधी दुनिया
जब आधी दुनिया स्त्रियो की
तो आधी मुसीबत भी होन्गी ही!,
उनके लिए तिलमिलाहट क्यूँ!
किशोर होते पुरूष का भी तो
जीना हराम हुआ रहता है
कि तुझे कमाना ही होगा
कुंआरी बहन के दहेज के लिए,
बूढे होते माँबाप के लिए
चलो माना इनके लिए न सही
..पर तुम्हें कमाना तो होगा
अपने बीवी बच्चों के लिए…
माना बीवी भी कमाने वाली मिल जाएगी तुझे…
मगर ये जरूरी नहीं कि-
वह घर चलाने मे हेल्प तेरी करे! तुम तो पुरूष हो
मांग भी नहीं पाओगे
हाथ फैला कर बीवी से
माँग भी लोगे तो
फटकार पहला लगेगी
तिल तिल मर जाओगे
फिर तभी से लेकर तुम!
इसलिए उठो बेटा! उठो भाई!
काम पे चलो, इसमें भलाई।
वो तो तुझी में हिम्मत है
हे पुरूष!
कि घर बार खेत-खलिहान
बैंक बैलेंस सब कुछ
नाम करे सहर्ष अपनी लुगाई
सुनीता सोलंकी ‘मीना’