प्रेस स्वतंत्रता दिवस पर विशेष कविता
प्रेस-स्वातंत्र्य-दिवस पता नहीं अब है कि कब है
।। अरी ओ आजादी…।।
अरी ओ आजादी !
मेरी प्यारी आजादी !
मेरी स्वप्न-प्रिये !!!
तुम्हारी विकलांगता दूर करने
कितनी कोशिशें कीं—
अब कैसी हो !
मेरे शुभचिंतक !
मेरे प्रिय !
अब मैं विकलांग नहीं हूं !
मैं दिव्यांग हूं !
मेरी अभिव्यक्ति के लिए
रेम्प सदृश
सुंदर-सुंदर टीवी चैनलों का
भरपूर प्रबंध है
और उसके प्रबंधक
महाशक्तिशाली काॅरपोरेट हैं
बस मुझे यह करना है
कि उनके दिये हुए निर्धारित प्रारूप में
मुझे शब्दश:
अभिव्यक्त होना है !
मेरी अभिव्यक्ति का
स्व-नियंत्रित
स्व-समर्पित
स्व-अनुबंधित
स्व-स्वीकार्य
स्व-नतशिर
स्व-गर्हित
स्व-समझौतित
शत-प्रतिशत कोटा तय है
इन शरारती शर्तों पर
मुझे अभिव्यक्ति की अभय है
मैं बिल्कुल निर्भय हूं
प्रिंटेड शब्द
तुम्हें अभी भी किसी का
भय है
निर्भय हो
इस समर्पित
स्वागतोत्सुक
अभयारण्य में
विचरण करो !
और ढेरों
विज्ञापन पाओ !
शीलकांत पाठक