पंखुरी सिन्हा की दो कविताएं
युवा लेखिका, दो हिंदी कथा संग्रह ज्ञानपीठ से, 5 हिंदी कविता संग्रह, दो अंग्रेजी कविता संग्रह। कई किताबें प्रकाशनाधीन। कई संग्रहों में रचनाएं संकलित हैं, कई पुरस्कार जीत चुकी है–कविता के लिए राजस्थान पत्रिका का 2016 का पहला पुरस्कार, मथुरा कुमार गुंजन स्मृति पुरस्कार 2019, प्रतिलिपि कविता सम्मान 2018, राजीव गाँधी एक्सीलेंस अवार्ड 2013, पहले कहानी संग्रह, ‘कोई भी दिन’ , को 2007 का चित्रा कुमार शैलेश मटियानी सम्मान, ‘कोबरा: गॉड ऐट मर्सी’, डाक्यूमेंट्री का स्क्रिप्ट लेखन, जिसे 1998-99 के यू जी सी, फिल्म महोत्सव में, सर्व श्रेष्ठ फिल्म का खिताब मिला, ‘एक नया मौन, एक नया उद्घोष’, कविता पर,1995 का गिरिजा कुमार माथुर स्मृति पुरस्कार, 1993 में, CBSE बोर्ड, कक्षा बारहवीं में, हिंदी में सर्वोच्च अंक पाने के लिए, भारत गौरव सम्मान. अंग्रेजी लेखन के लिए रूस, रोमानिया, इटली, बांग्लादेश और नाइजीरिया द्वारा सम्मानित। कविताओं का मराठी, पंजाबी, बांग्ला, तेलुगु, बोडो, जर्मन, सर्बियन, रोमानियन, स्पेनिश, चेक, फ्रेंच, हिब्रू, यूक्रेनी, अरबी, उर्दू, तुर्की, उज़्बेक और नेपाली में अनुवाद हो चुका है.
राजधानी, टेलीविज़न और चुनाव
और इस तरह उतरती है
दिल्ली पर एक बेहद सार्थक शाम
घंटे से ज़्यादा लम्बे ट्रैफिक जैम के बाद
बाबू, अफ़सर और जनता
अलग ओहदों की गाड़ियों में पहुँचते हैं घर
घर होता है सबसे ज़्यादा जगमग
टेलीविज़न की रौशनी से
वहीँ होता है सब ख़बरों का खुलासा
वहीँ मिलती है सबसे तगड़ी
राजनैतिक दलील
पुख्ता समग्र दृष्टि
वहीँ होता है देश और विदेश
की सीमाओं
का बंटवारा
जल का भी होता है वहीं आवंटन
वहीँ की हरी झंडी से चलती रुकती हैं
सारी ट्रेनें
अलबत्ता, टेलीविज़न के दफ्तर के सामने
पान सिगरेट वाले की दुकान पर
जिसे सब कहते हैं गुमटी
मिलती हैं कुछ ज़्यादा अंदरूनी खबरें
होता है ख़बरों का खुलासा
उन्हें बनाने वालों
दबाने वालों के मिजाजों के साथ
मुमकिन है ये न होता हो
और दफ्तरों के आगे
लेकिन सरकारी फोन
सरकारी नेट क्या
इनकम टैक्स के ऑफिस में चले जाईये
बाहर नहीं
ज़रा भीतर चले जाईये
एक से दूसरे क्यूबिकल तक
भेजे जाने में
आप जान जाएंगे पूरा दफ्तर
ऐसे किसी दफ्तर में काम निपट जाए
तो उतरती है
दिल्ली पर एक बेहद सार्थक शाम
कई लोग उतारते हैं
दिन भर क्या
उम्र भर की खीझ को
दारू की एक बोतल में
कुछ पहाड़ से लौटे सैलानी
बोल रहे हैं
शराब बंदी पर
कुछ दे रहे हैं धरना
भू माफिया और सड़क माफिया के खिलाफ
आप के पास जाने को
इतनी जगहें हैं
कि खो जाएंगे
पर अगर कहीं
कंडोम बांटने वालों के साथ
आप चले गए
दिल्ली या मुंबई के किसी स्लम में
तो जान जाएंगे
अभी अभी या फिर कभी
होने वाले चुनावों की सम्पूर्ण सार्थकता…………..
पंखुरी सिन्हा
बिजली का आना जाना और ठहरना
ऐन माइक्रोवेव में डालते ही
चाय का मग
जाती है बिजली
खौला लेने के बाद
चूल्हे पर पतीली में
ठीक उड़ेलते वक्त दुबारा
खट्ट से लौट आती है!
केयर टेकर है बिजली
औबसर्वर है यु एन की
जाने क्या क्या है बिजली
होने के अलावा
गैर ज़िम्मेदार!
बेकार और लाचार
बिकी हुई बिजली चोरों
बिजली खोरों के हाथों!
ज़रा लोड नहीं ले पाती
किन्तु ठहरिये
चली गयी है दबाने से भी पहले
बटन माइक्रोवेव का
हुई है गायब खोलते ही दरवाज़ा
यह कैसे हो सकता है
संयोग मेरे दोस्तों?
होता है बार बार ऐसा
कई बार ऐसा
और बदलता है
क्रम भी
कभी ढालते ही देगची में चाय
और कड़ाही में सब्ज़ी अथवा दाल
और कभी ऑन करते लाइटर
और जलते ही चूल्हा
भक्क से आ जाती है बिजली
ज़रूर करती है खेल
इस दौरान बिजली!
बिजली तो दाल चावल
व्यंजन पकवान है नहीं
फिर उसे चूल्हे के जलने से
इतना प्यार क्यों है?
इससे पहले की आपका ह्रदय
हो जाए द्रवित
आप लगें सोचने
यह बिजली तो
तारों में बहती
माता सी है! नहीं!
गौर से सोचिये दोस्तों!
बिजली किसी सरकारी मंत्रालय के अधीन
प्राइवेट कंपनी से आती हुई
ताकत है
और बड़ी आसानी से इस्तेमाल
हो सकती है
राज्य द्वारा निगरानी के लिए भी!
बड़ी सफलतापूर्वक किया है
पूर्वी जर्मनी की स्तासी सरकार ने ऐसा
हो सकता है
गलत हो
मेरे सोचने का तरीका
और बिजली कभी नहीं हो सकती हो
सर्वेलेंस का हथियार!
केवल पी ओ डब्लू कैंप में
और राजनैतिक बंदियों पर
आज़मायी जाती है बिजली
दोस्तों, पागलों का उपचार भी होता है
बिजली से
भले ही क्रूर हो वह तरीका
और बिजली की कुर्सी में
उतारा जाता है
लोगों को मौत के घाट भी
बिजली से पकते हैं चावल
उबलता है पानी
बिजली की सचमुच
अनंत है कहानी
बिजली की रौशनी में
लोग दिखते हैं खूबसूरत
गोरे, साफ़ शफ्फाक
फिलहाल, इतना है काफी
कि ऊँगली की नोक पे
आये जाए बिजली
रहे स्विच के ऑन ऑफ में
उपभोक्ता का जीवन
न चलाये बिजली
और इसके लिए हो ज़रूरी
तो लोग हों शामिल जुलूस में
कि हर हरियाली को
काट कर
लगाया नहीं जाए
एयर कंडीशनिंग का धंधा!
पंखुरी सिन्हा